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11 May 2017 · 1 min read

** गजल **

लेखनी का सिर्फ सच आधार है।
सच नहीं तो लिखना निराधार है।
*
लिखना तो माँ शारदे की कृपा है
गरिमा छोड़ दें तो सब बेकार है।
*
जबान को गर कटार कहते हैं तो
लेखनी में भी तलवार की धार है।
*
कोई गर जुबां से वार करता है तो
लेखनी का रूप होता तलवार है।
*
जहाँ शस्त्र काम नहीं आता वहाँ
लेखनी कर सकती अपना वार है ।
*
रचनाकार की भुजा है लेखनी और
निकले शब्द उसका व्यवहार है।
*
आत्मा की आवाज बनती है लेखनी
“पूनम” रचना लेखक का संस्कार है।
@पूनम झा
कोटा राजस्थान

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