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20 Jun 2017 · 1 min read

कविता : ??साथ में चले हैं??

हम तो अपने प्यार की तलाश में चले हैं।
उनसे कोई पूछे वो क्यों साथ में चले हैं।।

देखते हैं ज़िधर भी नज़र में पाते हैं उन्हें।
सरे-महफ़िलल चाहे सरे-बाज़ार में चले हैं।।

दीदार कर हया से झुका लेते हैं वो आँखें।
इतनी शर्मों-हया लेकर वो प्यार में चले हैं।।

सरे-महफ़िल पकड़ हाथ उसने ग़जब किया।
गाफ़िल जाने नहीं किस व्यवहार में चले हैं।।

रुस्वा करेंगे वो मुझे बनाके अपना दीवाना।
पागल हैं वो इतने इश्क़े-ख़ुमार में चले हैं।।

सुबह देखें न शाम जाने एक ही इश्क़े-राग।
चकोर बनकर वो चाँद के प्यार में चले हैं।।

मिटेंगे या सनम को पालेंगे यही तमन्ना है।
सीना ताने वो रिवाज़ो के संहार में चले हैं।।

फूल-ख़ुशबू कभी अलग कैसे रहे चमन में।
चोली-दामन का साथ ले इज़हार में चले हैं।।

उम्मीदे वफ़ा न टूटी है न टूटेगी मरते दम।
वो तो सच्चे बादशाह के दरबार में चले हैं।।

प्रीतम हो गए वो कर दिया मुझे भी प्रीतम।
लगता है मेरी तरह”प्रीतम”के दीदार में चले हैं।।
……….राधेयश्याम बंगालिया”प्रीतम”
……….????????

Language: Hindi
256 Views
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