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12 Jun 2023 · 1 min read

हमें जीना सिखा रहे थे।

ज़माने से कितने खफा और नाराज थे,
अपनों से बेगानों-सा वफ़ा निभा रहे थे,
कोशिशें नफ़रत जताने वालोंं की हमसे थी इतनी ,
उनकी हर क्रिया से मुश्किलें नज़र आ रही थी।

हर तरीके से जो हमें सता रहे थे,
उनके इस बातों से बेवजह नाराजगी थी हमें,
फितरत थी जिनकी अपनी भड़ास निकाल रहे थे,
बेबुनियाद आरोप उनको लगा रहे थे।

वो हमें सताते थे इतना ,
मुश्किलें राहों की बढ़ा रहे थे,
समझा खुद को अपने तर्ज पर उनको जब,
कहीं न कहीं हमें जीना सिखा रहे थे।

भाव और भावनाओं को समझा हमने,
उनके इरादों को प्रेम से तौला जब से,
हर वार उनका जख्म बढ़ाते थे,
फिर भी हमें जीना सिख़ला रहे थे।

रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।

2 Likes · 2 Comments · 351 Views
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