मिलन की वेला
सायंकाल फिर मिलन की वेला, तेरी राह निहारेगी
मैं तोडूंगा धीर स्वयं का, तू वेसुध होकर आएगी …………
लाज से भरे तेरे नैनन में, प्रेम रिक्त रह जाएगा
अपने हाथों में जब मैं लूँगा, चित्त तेरा खो जायेगा
सिकुड़ सिमट कर तब, तू कुमुदनी बन जाएगी
मैं तोडूंगा धीर स्वयं का, तू वेसुध होकर आएगी …………
बिन शब्दों के शब्दों में, अनमोल व्याकरण भाषा होगी
मूक अधर हिल न सकेंगे , नव लेकिन परिभाषा होगी
गूंज उठेगा संगीत अमर, और वीणा तान सुनाएगी
मैं तोडूंगा धीर स्वयं का, तू वेसुध होकरआएगी …………
मृदुल प्रेम के रस में डूबे, अनमोल क्षणों को जी लेंगे
भव बन्धन के हर बन्धन को, भक्ति भाव से तोड़ेंगे
एक नये उल्लास में डूबी, तब गाथा बन जाएगी ……..
मैं तोडूंगा धीर स्वयं का, तू वेसुध होकरआएगी …………