कृष्णा ने पढाया नेतृत्व का पाठ
जीवन में नेतृत्व का बहुत महत्व है । एक कुशल नेतृत्व सफलता के सोपन तक पहुंचाता है ।
कृष्ण का कुशल नेतृत्व उनके जन्म से महाभारत तक कदम कदम पर दृष्टिगोचर होता है । बाल ग्वालों के बीच उनके संकटों के समय कृष्ण के नेतृत्व ने उन्हें ऊबारा और राक्षसों को मारा है ।
कुशल नेतृत्व के तहत ही कृष्ण ने महाभारत में न केवल अर्जुन को कर्म प्रधान रहने की शिक्षा और उपदेश दिये बल्कि एक महा युद्ध का नेतृत्व भी किया जिसका उदेश्य पाण्डवों को विजय करना था ।
एक व्यवहारिक दृष्टिकोण से हम आज के समय में नेतृत्व पर विचार करें तब पायेंगे कि घर से ले कर अपने कार्यक्षेत्र हर जगह कुशल प्रबंधन और नेतृत्व की जरूरत है ।
कुशल नेतृत्व के लिए निम्न विशेषताएँ जरूरी है :
– टीम भावना
कृष्ण ने अपने नेतृत्व के अंतर्गत सबसे पहले टीम भावना को प्राथमिकता दी । बचपन में भी उन्होंने अपन ग्वालों के साथ टीम बनाई थी और सब को उनके काम सौंप कर नेतृत्व किया था , जो उनकी सफलता का कारक था । टीम में सबको बराबरी का महत्व देते हुए बढने से सफलता अवश्य मिलती है ।
– जिम्मेदारी लेना ;
कुशल नेतृत्व में जहाँ सफलता का श्रेय टीम को देना आता है वही असफ़लता की जिम्मेदारी स्वयं लेना होना चाहिए । कृष्ण जब उनकी टीम पर कोई विपत्ति आती थी तब वह आगे आते थे और सामना करते हुए संघर्ष कर सफल होते थे ।
– प्रोत्साहित करना :
नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को अपनी टीम को सतत् प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे टीम में जोश बना रहे । कृष्ण ने इस बात का पूरा ध्यान रखा और जहाँ जरूरत पड़ी वहाँ हास्य तो कहीं उपदेश और कठोर निर्णय ले कर अपनी टीम में जोश बनाए रखा ।
– सामूहिक विचार विमर्श:
कुशल नेतृत्व के तहत अपने को सर्वश्रेष्ठ नही समझना चाहिए, यहाँ अपनी टीम के साथ यथासमय सामूहिक सलाह लेनी चाहिए। कृष्ण ने अपने बाल सखाओ और महायुद्ध के समय साथियों की सलाह से कार्य किया जिससे वह सफल हुए ।
– समय का निर्धारण:
कुशल नेतृत्व में हर कार्य को पूरा करने के लिए समय निश्चित होना चाहिए। वरना दिशाहीन बढते रहने का कोई औचित्य नहीं है । कृष्ण इस बात का पूरा ध्यान रखा और पाण्डवों के वन गमन के समय उनसे अपने लक्ष्य की तरफ बढते हुए निर्धारित समय में उन्हें पूरा करना भी शामिल था ।
– योजना बनाना :
कुशल नेतृत्व के तहत कार्य करने के लिए पहले योजना बनाना चाहिए। जिससे टीम का नेतृत्व करना सुगम होगा और योजना के अनुसार कार्य निष्पादन होगा । कृष्ण ने वृन्दावन, मथुरा में और महाभारत के समय योजना को महत्व दिया । इसलिए जीवन में कोई भी कार्य योजना बना कर और सभी को साथ ले कर करना चाहिए।
– कार्य का मूल्यांकन:
नेतृत्व के दौरान किए गये कार्यों का समय समय मूल्यांकन करना चाहिए और कमियों को दूर करते रहना चाहिए। कृष्ण ने महाभारत के दौरान इस बात का पूरा ध्यान रखा और अपनी टीम को समय रहते कमियों से अवगत कराया ।
– संप्रेषण बनाए रखना :
कुशल नेतृत्व के तहत अपनी टीम के साथ स्वस्थ संप्रेषण बनाए रखना चाहिए यहाँ अहं की कोई जगह नहीं होनी चाहिए कई बार छोटे लोगों की भी सलाह उपयोगी होती है । कृष्ण हर स्तर पर इसका पूरा ध्यान रखा और अपने सेनापतियों, सहयोगिनी से सलाह ले कर महायुद्ध में पाण्डवों को विजय दिलवाई।
– सच्चरित्र होना :
नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को सच्चरित्र होना चाहिए उसे अपनी टीम के साथ सादगी से और चरित्रवान होना चाहिए । तभी वह उनके सामने आदर्श प्रस्तुत कर पायेगा । कृष्ण अपने जीवन में चंचल रहे और विभिन्न लीलाऐं की । भरी सभा में उन्होंने द्रोपदी की लाज बचाई ।
इस तरह हम देखते हैं कि कृष्ण और नेतृत्व एक दूसरे के पूरक हैं।
आज के युवाओं को कुशल नेतृत्व के लिए अपनी क्षमताओ को बढ़ाना चाहिए और ईमानदारी, मेहनत और लगन लक्ष्य प्राप्ति में प्रयासरत रहना चाहिए।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव