किशोरावस्था में विशेष प्रेरणात्मक सलाह
किशोरावस्था में विशेष प्रेरणात्मक सलाह
बाल्यावस्था के बाद व युवावस्था से पहले की आयु की गणना किशोरावस्था में की जाती है । इस अवस्था में एक किशोर बालक या बालिका में अनेक शारीरिक व मानसिक बदलाव आते हैं । वह खिलौनों की बजाय अपने साथियों के साथ ज्यादा समय व्यतीत करने में विश्वास रखता है। आमतौर पर कक्षा 7 से लेकर कॉलेज के दिनों तक की समय अवधि को किशोरावस्था का नाम दिया जाता है । जिसमें किसी किशोर की आयु 13 वर्ष से लगभग 19 वर्ष तक की होती है । इस अवस्था में किशोर बालक या बालिका की मानसिकता में थोड़ी सी परिपक्वता आ जाती है और वह खिलौनों का साथ छोड़ कर अपने नए दोस्त बनाने में ज्यादा विश्वास रखता है । प्रकृति का नियम है कि प्रत्येक व्यक्ति को इस दौर से गुजरना पड़ता है । इस अवस्था को जीवन की बेहद सन्वेदात्मक अवस्था कहा जाता है क्योंकि किशोर में सही या गलत निर्णय लेने की पूरी क्षमता नहीं होती । वह ज्यादातर निर्णय भावनाओं में बह कर लेता है।
आइए किशोरावस्था में आने वाले कुछ महत्वपूर्ण बदलावों पर प्रकाश डालते हैं :-
किशोरावस्था में एक किशोर में अपने सहपाठियों या दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिताने की ललक बढ़ जाती है ।
वह ज्यादा से ज्यादा समय घर से बाहर अपने साथियों के साथ बिताना पसंद करता है ।
किशोरावस्था में किशोर के शरीर की प्रकृति में बदलाव आते हैं । वह सामान्य बालक की अपेक्षा अपने शरीर के अंगों की बनावट, आकार, आवाज में भारीपन, चेहरे पर मूंछ दाढ़ी, लंबे बाल, व एक दूसरे के प्रति आकर्षण को महसूस करता है ।
किशोर स्वयं को दूसरों की अपेक्षा ज्यादा प्रभावशाली व उन्हे साथ लेकर चलने में विश्वास करता है ।
वह समूह में रहकर स्वयं को ज्यादा सुखी मानता है ।
इस अवस्था में किशोर पूर्ण रूप से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है । वह प्यार और नफरत में उच्चतम सीमा को पार करने से भी नहीं चूकता ।
इस अवस्था में किशोर को अनेक सावधानियां रखनी चाहिए ।
1. उसे संवेदनशील विषयों पर अपने साथियों माता-पिता से लगातार बात करते रहना चाहिए ।
2. शारीरिक बदलाव के विषय में अपने परिचितों व समझदार सहयोगियों से राय लेनी चाहिए ।
3. उसे इस अवस्था में नशे में लिप्त व सामाजिक बहिष्कृत लोगों से सदैव दूरी बनाकर रखनी चाहिए ।
4. मन की एकाग्रता के लिए किशोर को नियमित व्यायाम, योगासन या ध्यान मुद्रा करनी चाहिए ।
5. खेलने- कूदने के साथ-साथ किशोर को अपना ध्यान केंद्रित करके अच्छी शिक्षा ग्रहण करना चाहिए ।
6. किशोर को अपने स्कूली पाठ्यक्रम के साथ-साथ अध्यात्म ज्ञान व साहित्यिक लेख पढ़ने चाहिए ।
7. शरीर में आए बदलावों के विषय में लड़कियों व लड़कों को अपने माता-पिता या सगे-संबंधियों से बातचीत करके गलत और सही कार्यों के बारे में जानकारी लेनी चाहिए ।
किशोरावस्था में बच्चों को समझाने का दायित्व प्रत्येक माता-पिता, अभिभावक व गुरुजनों का है । अखबारों की सुर्खियों में आए दिन किशोरों द्वारा उठाए गए गलत निर्णयों, प्रेम प्रसंगों के चलते मार- पिटाई, व एक दूसरे के लिए जान न्योछावर करने, जैसी अनेक घटनाएं आती रहती है जिन्हें गंभीरता से लेकर उनके समाधान हेतु प्रयास करने चाहिए । हम सभी का यह दायित्व है की किशोरावस्था से गुजरने वाले बच्चों को सही राह दिखाएं ।
इसके लिए निम्न प्रयासों की आवश्यकता है :-
माता- पिता किशोरावस्था में अपने बच्चों के साथ दोस्तों जैसा व्यवहार करके उनकी समस्याओं का निदान करें ।
किशोरावस्था में आने वाली समस्याओं के विषय में स्कूलों व कॉलेजों में सेमिनारों का आयोजन किया जाना चाहिए ।
किशोरावस्था में युवाओं को भटकने से बचाने के लिए शिक्षण संस्थानों में छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग मार्गदर्शन व सलाह केंद्र बनाए जाने चाहिए । इस क्षेत्र के कुशल एवं निपुण लोगों को इसका कार्यभार सौंपा जाए ।
सरकार द्वारा किशोरों में जागरूकता व भटकाव को रोकने के लिए पंचायत स्तरों पर भी कुछ कमेटियां बनानी चाहिए । जो भटके हुए युवाओं का सही मार्गदर्शन कर सकें ।
अपने स्वरचित लेख के माध्यम से मैंने किशोरावस्था के कई पहलुओं व निदानात्मक उपायों पर बल दिया है जो एक सशक्त राष्ट्र निर्माण में रीड की हड्डी की तरह साबित हो सकते हैं । भटके हुए किशोरों को डांट, सजा या अलगाव के मार्ग से सही रास्ते पर नहीं लाया जा सकता, बल्कि उन्हें प्यार, मार्गदर्शन व अपनेपन से सही राह दिखाई जा सकती है ।
अपने इसी दृष्टिकोण के चलते पिछले 15 वर्षों के अध्यापन काल में मैं कई युवाओं को सही पथ पर लाने में कामयाब रहा हूं । उम्मीद करता हूं कि समाज के सभी वर्ग इस क्षेत्र में अपना सहयोग देंगे ।