“कवि तो वही”
“कवि तो वही”
द्रवित होने पर
सरिता सा बहे
अगर रूष्ट हों तो
ताप सारे दहे
कलुष में डूबकर भी
कलम कीर्ति-लाभ लहे
कवि तो वही
जो अकथनीय कहे।
“कवि तो वही”
द्रवित होने पर
सरिता सा बहे
अगर रूष्ट हों तो
ताप सारे दहे
कलुष में डूबकर भी
कलम कीर्ति-लाभ लहे
कवि तो वही
जो अकथनीय कहे।