ऋग्वेद में सोमरस : एक अध्ययन
ऋग्वेद में सोमरस : एक अध्ययन
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सोमरस का भारत के प्राचीन इतिहास तथा वैदिक संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है । सोमरस को समझने के लिए आइए ऋग्वेद में प्रवेश किया जाए । इसका संस्कृत से हिंदी में पद्मभूषण डॉ. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी ने अनुवाद किया है। आप का भाष्य मेरे सम्मुख है ।
ऋग्वेद के अनुसार “सोमरस दिव्य अन्न है तथा सरस्वती नदी पर होता है । इसलिए हे ज्ञानी मनुष्य ! तुम नदियों में श्रेष्ठ नदी सरस्वती की स्तुति करो । “( ऋग्वेद मंडल 7 ,सूक्त 96 , मंत्र एक तथा दो)
सरस्वती नदी पर सोमरस मिलता है ,यह बात तो स्पष्ट हो गई लेकिन अब एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या यह मैदान में मिलने वाली औषधि है ? इसका उत्तर ऋग्वेद एक स्थान पर यह देता है कि ” पर्वत शिखर पर सोम आदि औषधियाँ होती हैं।” ( मंडल 7 , सूक्त 70 , मंत्र 3 ) इसी मंत्र में आगे लिखा है :- “लोग सोम आदि औषधियों को लाकर उनसे यज्ञ करते हैं। अश्विनी कुमार पर्वत शिखर पर जाते हैं । उन औषधियों को लाते और सुख पहुँचाते हैं। ( मंत्र 3 )
यह अश्वनी कुमार कौन हैं ? इसके बारे में ऋग्वेद में मंडल 7 , सूक्त 68 , मंत्र 6 में लिखा हुआ है :- ” च्यवन ऋषि बहुत वृद्ध हो गए थे । उनके पास अश्विनी कुमार गए। उन्हें पौष्टिक अन्न देकर फिर से तरुण बना दिया और उनकी मृत्यु से रक्षा की।”
अब प्रश्न यह है कि जब सरस्वती नदी ही लुप्त हो गई तो उस नदी पर मिलने वाला सोमरस स्वतः ही इतिहास की एक वस्तु बनकर रह गया । लेकिन इतिहास एक ऐसा विषय है जो सदा – सदा के लिए अमर हो जाता है । ऋग्वेद में सोमरस के संबंध में जो विस्तार से चर्चा की गई है , उसने सरस्वती नदी के लुप्त होने के बाद भी सोमरस को मनुष्य जाति की स्मृतियों में सदा – सदा के लिए सुरक्षित कर लिया है।
आखिर यह सोमरस है क्या ? ऋग्वेद कहता है कि ” जिस समय सोम का रस निकालते हैं उस समय वह हरे रंग का होता है । वह रस निकालकर छलनी में डालकर छानते हैं। ” (मंडल नौ ,सूक्त तीन, मंत्र 9)
अब प्रश्न उठता है कि यह सोमरस जो सरस्वती नदी पर मिलता है वह होता कैसा है ? ऋग्वेद के अनुसार :-” सोमवल्ली हरे रंग की होती है । वह चमकती है । उस का रस निकालते हैं । सोमरस चमकता है । मधुर होता है । बल वर्धन करता है और अपनी चमक से शोभता है । “( ऋग्वेद : मंडल 9 ,सूक्त पाँच, मंत्र 4)
इस बात का वर्णन एक अन्य मंत्र में भी पुनः आता है । ऋग्वेद लिखता है: – “सोमरस निकालने पर कलशों में सुरक्षित रखा जाता है। उस चमकने वाले हरे रंग के सोमरस में गाय का दूध मिलाया जाता है।” (मंडल 9, सूक्त 8, मंत्र 6)
सोमरस की वनस्पति औषधि इस प्रकार हरे रंग की होती है तथा चमकने वाली होती है । चमकने वाली वनस्पति औषधि हमें संजीवनी बूटी के नाम से रामायण काल में भी देखने को मिलती है । जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो जाते हैं और हनुमान जी संजीवनी बूटी की खोज में जाते हैं ,तब उस संजीवनी बूटी की पहचान यही कही गई थी कि वह पर्वत पर चमकने वाली होती है । संजीवनी बूटी और सोमरस औषधि में इस प्रकार यह समानता तो दिखाई पड़ रही है कि दोनों में चमकने वाला गुण होता है।
अब महत्वपूर्ण प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सोमरस की वनस्पति औषधि तो सरस्वती नदी पर मिल गई लेकिन उससे सोमरस कैसे तैयार होता होगा ? ऋग्वेद के आठवें मंडल के दूसरे सूक्त के मंत्र दो तथा तीन में इसका वर्णन इस प्रकार है:-
” सोम पहले तोड़ कर लाए जाते हैं । फिर पत्थरों द्वारा कूट कर उनका रस निकाला जाता है। फिर भेड़ के ऊन से बनी हुई छलनी से उसे छाना जाता है तथा जिस प्रकार घोड़े को नदी में नहलाया जाता है उसी तरह उस सोमरस में पानी मिलाया जाता है। हे इंद्र ! हम इस सोमरस को उसमें दूध आदि मिश्रित करके स्वादिष्ट बनाते हैं और तुम्हें बुलाते हैं।।”
अब इस सोमरस के स्वाद के बारे में भी कुछ जानकारी एकत्र करने का प्रयत्न करते हैं। ऋग्वेद कहता है :- ” यह सोमरस स्वाद में तीखे होने के कारण इसमें दूध और दही आदि मिलाकर पिया जाता है। सोमरस स्वाद में तीखे होते हैं ,अतः जब उनमें गाय का दूध मिलाया जाता है तभी वह पीने के योग्य होते हैं। (ऋग्वेद मंडल 8 , सूक्त 2 , मंत्र 9 तथा 10 )
सोमरस तैयार करना सरल नहीं होता । ऋग्वेद में लिखा है :- “हे इंद्र ! तू सोम का रस पी । यह सोमरस तुझे आनंद दे। पत्थरों से कूटकर सोमरस निकालते हैं ।दोनों हाथों से यह पत्थर पकड़े जाते हैं ।जिस तरह सावधानी से सारथी घोड़ों को सँभालता है ,उसी तरह सावधानी से यह पत्थर दोनों हाथों से सँभाले जाते हैं । जिस तरह लगाम को ठीक तरह न पकड़ने पर घोड़े इधर-उधर भागते हैं ,उसी तरह पत्थर भी यदि ठीक करके न पकड़े जाएँ, तो वे इधर-उधर गिरने लगते हैं।”( ऋग्वेद सातवां मंडल , सूक्त22, मंत्र 1)
सोमरस की वनस्पति भले ही तीखे स्वाद वाली होती है ,लेकिन जब सोमरस तैयार हो जाता है तब वह सोमरस मीठा और आनंद को देने वाला होता है। (ऋग्वेद मंडल 8 सूक्त 24 मंत्र 16)
तैयार हुए सोमरस का रंग क्या हरा ही बना रहता है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वह सोमरस तैयार होने के बाद सोने के रंग वाला हो जाता है । (देखिए ऋग्वेद मंडल 8 , सूक्त 1 , मंत्र 23 )
अब महत्वपूर्ण प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सोमरस को पीने से शरीर पर प्रभाव क्या पड़ता है ? यह तो स्पष्ट हो चुका है कि सोमरस हरे रंग की एक वनस्पति से तैयार किया जाने वाला पेय पदार्थ है, जोकि वनस्पति सरस्वती नदी पर मिला करती थी। इससे जो सोमरस बनता था ,उसके प्रभाव के संबंध में ऋग्वेद के आठवें मंडल के 79 वें सूक्त में इस प्रकार वर्णन किया गया है :-
“सोम रस को पीने से हृदय को सुख मिलता है। उसे पीने से उन्मत्ता उत्पन्न नहीं होती अपितु शरीर में पहले से जो उन्मत्ता होती है ,वह नष्ट होकर उसकी जगह उत्साह उत्पन्न होता है। इसके पीने से वात आदि रोग भी नष्ट हो जाते हैं । हे सोमरस ! हमारे शरीर में जाकर हमारे शरीर को कंपित मत कर ,हमें भयभीत भी मत कर तथा अपने तेज से हमारे शरीर को नुकसान भी मत पहुँचा । अपितु हमारे शरीर में जो रोग कीटाणु आदि हिंसक शत्रु हों ,उन्हें दूर कर। ” (मंत्र 7 , 8 तथा 9 )
सोमरस पीने से शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है । यह किसी भी प्रकार से नशा नहीं है ,अपितु एक बलवर्धक पेय पदार्थ है। ऋग्वेद लिखता है :-
” जब सोमरस शरीर के अंदर जाता है, तब मनुष्य चाहे कितना भी क्रोधी हो ,वह शांत हो जाता है ।
मनुष्य सोमरस पीकर अमर हो जाता है। हे सोम ! पेट में जाकर तू हमारे लिए कल्याणकारी हो । हे सोम ! तू हमें सुख दे और उत्तम रीति से जीने के लिए तू हमारी आयु दीर्घ कर ।
सोमरस के पीने से शरीर में उत्साह उत्पन्न होता है और शरीर के प्रत्येक जोड़ दृढ़ होते हैं , पैरों में भी शक्ति आती है और शरीर रोगों से सदा दूर रहता है । सोमरस को पीने से रोगों का भय नहीं रहता ।
सोम पीने से मनुष्य जलती हुई अग्नि के समान तेजस्वी और दैदीप्यमान होता है। सोमरस में पोषक तत्व भी भरपूर होते हैं।
सोमरस को प्रेम पूर्वक पीने से मनुष्य पुष्ट होता है और उसकी आयु दीर्घ होती है है।
सोम हमारा कल्याण करने के लिए ही हमें सुखी कर । हमें तू चतुरता और सात्विक क्रोध प्रदान कर ।
यह सोम शरीर के प्रत्येक अंग में जाकर उसे शक्ति प्रदान करता है ,शरीर में उत्साह भरता है । यदि कभी नियम का उल्लंघन भी हो जाए तो भी इस सोम का सेवन करने से शरीर सशक्त ही रहता है । (ऋग्वेद मंडल 8 , सूक्त 48 , मंत्र 2 ,3 ,4 ,5 ,6 ,7 ,8 तथा 9 )
ऋग्वेद में सोमरस की प्रशंसा से मंत्र भरे पड़े हैं । सोमरस के औषधीय गुणों का वर्णन करते हुए ऋग्वेद आगे कहता है :-
” सोमरस आसानी से पचने योग्य है । इसीलिए यह बहुत मात्रा में पिए जाने पर भी पीने वाले को कष्ट नहीं देता । यह सोम आयु को दीर्घ करने वाला भी है ।
सोमरस का पान करने से कठिन से कठिन और अत्यंत पीड़ा देने वाले रोग भी दूर हो जाते हैं और मनुष्य की आयु दीर्घ होती है ।
यह सोमरस स्वयं अमर है और पीने वाले को भी अमर बनाता है । ऐसे सोम से सुख और समृद्धि प्राप्त होती है (ऋग्वेद मंडल 8 , सूक्त 48 ,मंत्र 10 ,11 तथा 12)
ऐसा सोमरस सर्वप्रथम इंद्र को अर्पित किया जाता था तथा तत्पश्चात सभी जन उसका सेवन करते थे । इसीलिए ऋग्वेद के मंत्र में प्रार्थना है :-
” सोम उदर में प्रविष्ट होकर शरीर का पोषण करने वाला होने से अन्न रूप ही है । वह हमें प्रतिदिन प्राप्त हो और हमारी सब ओर से रक्षा करे । (ऋग्वेद मंडल 8 , सूक्त 48 , मंत्र 15 )
इंद्र केवल विचार अथवा कल्पना नहीं था। वह जीवित व्यक्ति का नाम था तथा सशरीर आता था । उसके सामने ही सोमरस तैयार होता था तथा सोमरस क्योंकि तैयार होने के बाद तुरंत पिया जाता था ,अतः अपने सामने तैयार हुए सोमरस को सहर्ष तुरंत पीता था । इंद्र को सोमरस प्रिय था । वह वीर और साहसी था तथा शत्रुओं से हमारी रक्षा करने वाला तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य रखने वाला योद्धा था । इसी कारण सर्वप्रथम इंद्र को स्वास्थ्य – लाभ की दृष्टि से सोमरस अर्पित किया जाता था।
स्पष्ट है कि सोमरस भारत की प्राचीन भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भारत में बहने वाली सरस्वती नदी पर पर्वत पर उपलब्ध होने वाली एक अति विशिष्ट तथा दुर्लभ वनस्पति औषधि हुआ करती थी। यह हरे रंग की तथा चमकने वाली होती थी। इसे कूटकर दूध ,दही ,शहद तथा जल मिलाकर पिया जाता था तथा तत्काल इसका सेवन किया जाता था । यह अद्भुत औषधीय गुणों से संपन्न थी तथा इसका सेवन शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी ,उत्साहवर्धक , बलवर्धक और आयु को दीर्घ करने वाला हुआ करता था । अब सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी है । सोम की वनस्पति औषधि अब अप्राप्य है तथा सोमरस केवल इतिहास का विषय बन गया है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
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