“इश्क़े-ग़म” ग़ज़ल
क़ुरबतेँ, लाएँगी रँग, दूर भी, रहते-रहते,
भूल जाऊँगा क्या सब, शायरी करते-करते।
अश्क़ पीने से अब, मुझको कोई गुरेज़ नहीं,
रूप निखरा है मिरा, इश्क़े-ग़म सहते-सहते।
ये न मालूम था, उसकी तो है फ़ितरत ऐसी,
उसमें खो जाऊँगा, उसको ही मैं पढ़ते-पढ़ते।
क्या ख़बर थी कि, रहेगा वही, तसव्वर मेँ,
बात पहुंचेगी यहाँ तक कभी, बढ़ते-बढ़ते।
ज़िक्रे-ज़ालिम नहीं करता हूँ इसलिए “आशा”,
दम निकल जाए ना, उस नाम को रटते-रटते..!
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क़ुरबतेँ # नज़दीकियाँ, nearness, closeness etc.
तसव्वर # ख़याल, imagination