आत्महत्या : एक गंभीर चिंतन
आत्महत्या के कारण का पता लगाने के लिए गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।
यह गहन अवसाद की एक ऐसी मनोदशा है जिसमें मनुष्य एकाकीपन से ग्रस्त होकर अपने आप को असहाय महसूस करने लगता है।
और उसके मनस पटल पर छाया विषाद किसी बाहरी परामर्श एवं प्रेरणा के अभाव में उसके आत्मविश्वास को नगण्य कर देता है ।
और उसमे इस भौतिक संसार के प्रति वितृष्णा उत्पन्न होती है । और उसमें इस संसार से प्रतिकार लेने में उसकी असमर्थता का भाव उसके इस संसार में अस्तित्व को चुनौती देता है । और उसे अपने जीवंत अस्तित्व से घृणा होने लगती है।
और इस प्रकार भावातिरेक की अवस्था में पहुंच कर वह मृत्यु को वरण कर लेता है ।
कभी-कभी इसमें अपनी मृत्यु से दूसरों को दुःखी करने की अंतर्निहित भावना का भी समावेश होता है।
यदि इसके मूल का विश्लेषण करें तो यह ज्ञातव्य है कि संसार में दो तरह के व्यक्तित्व होते हैं
1 अंतर्मुखी ( Introvert )
2. बहिर्मुखी(Extrovert )
अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले अपने दुःखों , संवेदनाओं एवं समस्याओं को अपने में ही समाहित किए रहते हैं ।और उसको दूसरों के समक्ष प्रकट नहीं करते, इस प्रकार के व्यक्ति अपनी ही धुन में एकाकीपन पसंद करते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान स्वयं ही खोजने का प्रयत्न करते हैं। और दूसरों की सलाह लेने में संकोच महसूस करते हैं। वे अपने दुःखों एवं संवेदनाओं को दूसरों से साझा करने से भी कतराते हैं। जिसमें कुछ भूमिका संकोच के सिवा उनके अंतर्निहित अहम की भी होती है।
ऐसे व्यक्ति सकारात्मक आत्म विश्लेषण के स्थान पर नकारात्मक आत्म विश्लेषण से अधिक प्रभावित होते हैं। जिसके फलस्वरूप उनके विचारों में नकारात्मकता की अधिकता होती है जिससे वे नकारात्मक आत्म निष्कर्ष के भाव से ग्रसित होकर अपनी समस्त समस्याओं एवं दुःखों के लिए स्वयं को दोषी समझने लगते हैं ।एवं विपरीत परिस्थिति में अपने को असहाय सा महसूस करते हैं। और अपने आप को परिस्थिति का सामना करने में असमर्थ पाते हैं। संकट से जूझने एवं अन्याय से प्रतिकार लेने के लिए पर्याप्त साहस के अभाव में उनका मनोबल क्षीण होने लगता है। जिसके फल स्वरुप उनमें अपने अस्तित्व के निरर्थक होने का भाव उत्पन्न हो जाता है। और उनमें संसार के प्रति वितृष्णा एवं स्वयं के अस्तित्व से घृणा का भाव जागृत होता है।
और इस नकारात्मक भाव के लगातार मस्तिष्क में मंथन से उनमें मृत्यु को वरण करने की तीव्र इच्छा जागृत होने लगती है । जिसमें कभी-कभी अपनी मृत्यु से लोगों को दुःखी करने की प्रवृत्ति का समावेश भी होता है। और इस नकारात्मक भावातिरेक में वे मृत्यु को वरण कर लेते हैं ।
इसके विपरीत बहिर्मुखी व्यक्ति अपनी संवेदनाओं, समस्याओं एवं दुःखों को प्रकट करने में सक्षम होते हैं ।और दूसरों से अपने विचारों को साझा कर उचित सलाह लेने से नहीं कतराते। उनके आत्म विश्लेषण में सकारात्मकता का भाव अधिक होता है जिससे उन्हें उचित सकारात्मक निष्कर्ष निकालने में सफलता मिलती है। इस प्रकार के व्यक्ति नकारात्मकता में भी सकारात्मकता खोजने में प्रयत्नशील रहते हैं।