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15 Nov 2022 · 11 min read

अल्फाज़ ए ताज भाग -10

1.

खुदाने जमीं पर हर शय जोड़े में बनाई है।
फिर भी जानें क्यूं इंसान चुनता तन्हाई है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

2.

इस जिंदगी में मुहब्बत कभी तमाम ना होती है।
हां ये बात दूसरी है कि ये आराम भी ना देती है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

3.

हमकों रिश्तों में सबसे ही बस जख्म पर जख्म मिल रहे हैं।
फिर भी जिंदगी तेरे दिए गमों को हम हंस हंस के जी रहे हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

4.

दर्दे- दिल का कहां कोई मरहम होता है।
गुजरते वक्त के साथ ही ये कम होता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

5.

हर किसी के मुकद्दर में कहां ये खुशियां होती हैं।
देखो कुछ हंसती हुई जिंदगियां भी यहां रोती है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

6.

इस जिन्दगी की जरूरतों में मैं बहुत ही उलझा रहता हूं।
फिर भी कुछ लिखने की मैं दिल से कोशिश करता हूं।।

बयां करने को तुम्हारी तरह मैं अल्फाज़ कहां से लाऊं।
एहसासों को समेटकर मैं कुछ बेअसर सा लिखता हूं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

7.

जानें ये जिन्दगी क्या ढूंढती हैं।
हर पल बस गम में तड़पती हैं।।

महसूदे मंजिल कैसे हम पाए।
तन्हा राह हम से ना कटती है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

8.

दायार ए रसूले करम मांगते है।
तुम्हारा ही जैसा इक सनम मांगते है।।

हो जाए इश्क हमें भी दिल से।
भले हो वहम वो इक वहम चाहते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

8.

अक्सर जमाना पूंछता है हमसे तुम्हारे बारें में।
कुछ यूं जुड़ा है तुम्हारा नाम मेरे हर फंसानें में।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

9.

कोई ज़रूरी नहीं है कि अदीबों के यहां अदीब ही पैदा हों।
बहुत से अदब ओ लिहाज़ वाले घरों में हमनें बदजुबाँ देखें हैं।।

शुक्र कर खुदा का जो तेरा रहने को अपना आशियाना हैं।
वर्ना फुटपाथ पर बिना दीवारों दर के बने हमनें मकां देखें हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

10.

तलाशते रहते हैं हम खुद को खुद ही के अन्दर।
तुम्हारे इश्क ने हमको यूं हमसे ही जुदा किया है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

11.

जिन्दगी भर का चैन ओ सुकूं ले गए हो।
बे जान करके जिस्म से हमारी रूह ले गए हो।।

तड़पता छोड़ कर दिल तोड़ कर गए हो।
नफरतों का इश्क तुम हमसे खूब कर गए हो।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

12.

इश्क में वफ़ा करके भी हम बेवफ़ा कहलाए हैं।
तुम कांटों जैसे चुभ करके भी फूल बन गए हो।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

13.

दो चार अल्फाज़ ही अदब के बोल दो तुम हमसे।
बेअदबी का तुमने क्यों हमसे रिश्ता बना लिया है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

14.

चलो आशिकी में फूल जैसे महकते है।
उनके गुलशने दिल का गुलाब बनते हैं।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

15.

वल्लाह तुम्हारा हुस्न है या कयामत की है बला।
हर दिले महफिल यहां बस तुमपर ही है फिदा।।

बज्म तो सजी थी पर रूमानियत है अब आई।
अहसान है तुम्हारा तुम तशरीफ़ लाए जो यहां।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

16.

जा जाकर पूंछ ले मेरी मोहब्बत इस ज़मानें से।
मैनें कितनी वफाएं की तेरे इश्क को निभानें में।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

17.

अच्छा ना किया तुमने हक भाई का मारकर।
शराफत देखो उसकी तुमको बद्दुआ भी नही दी।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

18.

इश्क में जीने की तमन्ना मरने का इरादा रखते हैं।
सुन ले जिन्दगी आज हम तुमसे ये वादा करते हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

19.

इससे हो बे खबर अंजान तो अंजान ही रहो।
इश्क है बेवजह तुम खुद को परेशान ना करो।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

20.

शिद्दत से चाहा है तुम्हें शिद्दत से नफरत भी करेंगे।
गर अब तक दी हैं इतनी खुशियां तो तुम्हें अब गम भी हम ही देंगे।

अपने दिल में तुम्हें खुदा बना कर रखा था हमने।
जिंदगी में हंसने की वजह हम थे तो रोने की वजह भी हम ही होंगे।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

21.

कश्ती को साहिल ना मिला जिंदगी को हासिल ना मिला।
हम किससे करें शिकवा गिला जब अपना ही कातिल निकला।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

22.

जिंदगी गमों के करीब हो गई है।
दुश्वारियां मेरा नसीब बन गई है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

23.

सावन के वो झूलें बारिश की वो रिमझिम बूंदें।
सब कुछ याद हैं हमें हम कुछ भी नहीं हैं भूलें।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

24.

इक रूह ही थी बस अपनी आज वो भी तन से जुदा हुई है।
अभी हम मरना ना चाहते थे पर ये जिन्दगी बे वफा हुई है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

25.

आलम ए दीवानगी है साथ है हुस्न ए यार।
यूं लगे जिन्दगी में मुकम्मल हुआ हूं आज।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

26.

मुलाकातों के सिलसिले तुमसे कम क्या हुए तुम हमको भूल से गए।
खुशियों की तलाश में थे हम पर देखो कितने गम हमको आकर के मिले।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

27.

काली रातों ने ओढ़ी ली खामोशी की चादर है।
और दिन के उजालो की हमको ना ज़रूरत है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

28.

तुम छोड़कर क्या गए गमों ने आ कर घेरा है।
जख्म दर्द ए दिल का गुजरते वक्त ने भरा है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

29.

वो तशरीफ क्या लाए महफिल का रंग बदल गया है।
देखकर हुस्न ओ शबाब उनका हर दिल मचल गया है।।

क्या बताए ताज हम तुमको यूं रौनक ए बज्म का।
यूं लगे जैसे आज चांद जमीं पर आकर उतर गया है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

30.

तन्हा जिंदगी साथ चलने को हमनवां मांगती है।
दे जो पल सुकूँन के ऐसा इक रहनुमां चाहती है।।

बंजारगी में अब तक ये बागवां जिंदगी बीती है।
किसी के दिल में बसने को अब मकां चाहती है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

31.

हंसना वा रोना दोनो ही हुआ है हमारा मुश्किल।
क्या बताए हम तुम्हें अब अपना हाल ए दिल।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

32.

वादा खिलाफी करना तुम्हारी आदत बन गई है।
तुम अक्सर ही अहद लेकर उससे मुकर जाते हो।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

33.

मत करना हमारे लिए सज्दों में दुआएं।।
वर्ना खुदा तुमको भी गुनहगार समझेगा।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

34.

क्या सच में खुदा होता है।
या ये बस एक अकीदा है।।
दर्द ओ गम की इंतिहा है।
हर इक दुआ हुई कज़ा है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

35.

अपनी जिन्दगी का एक उसूल है।
जो भी खुदासे मिले वो कबूल है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

36.

शहर के अदीबों की चाहत थी।
कहने को वो एक तवायफ थी।।

बचता ना कोई तीर ए नज़र से।
वो अदाएं हुस्न से कयामत थी।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

37.

आजमाइशों में खुद को क्यों डालते हो।
जिसके काबिल नही हो तुम उसको खुदा से क्यों मांगते हो।।

खुदकी ना देखते हो बस गिला करते है।
गैरो की खातिर तुम हमेशा ही हमको जानें क्यों रुलाते हो।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

38.

वह आ करके महफिल में जब नजरों से इशारा कर गए।
गमों के अंधेरों में खुशियों के कुछ जुगनू उजाला कर गए।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

39.

जिंदगी जीने का मकसदे मुस्तकबिल ढूंढती है।
कोई तो बताए हमें पता वास्ते मंजिल पूछती है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

40.

किस कमबख्त को मैखाने में जाकर पीने की ज़िद है।
हमतो बस एक तुमको ही याद करने हर रोज़ जाते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

41.

चांदनी की चादर ओढ़कर देखो मेरा घर चमक रहा है।
यूं लगे आफताब बनकर शबनम इस पर बरस रहा है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

42.

मशगुलियत है ज्यादा कहीं तुमको हम भूल ना जाए।
इसीलिए बना कर तावीज तुम्हें हम गले में पहनते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

43.

इस जहां में हर किसी का मुकद्दर जुदा होता है।
किसी से ये नाराज तो किसी पर फ़िदा होता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

44.

हर ख्वाहिश पर दम निकाल दूं।
गर तू कहें तो खुदको बिगाड़ दूं।।

आकर बैठ पास तू पहलू में मेरे।
मैं तुझकों तेरी रूह से संवार दूं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

45.

दुआएं मांगने का दौर चल रहा था।
अपने खुदा से तुझको मैनें मांग लिया।।

असर होता है इन दुआओं में बहुत।
पाकर तुझको इसको मैंने जान लिया।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

46.

अन्दाजे बयां से शख्सियत बता देता है।
सलीके से हर इंसा फितरत जता देता है।

लाख छुपा लो किसी झूठ को चादर से।
पर वक्त एक दिन हकीकत दिखा देता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

47.

तेरे नाम को कलमे सा पढ़ने लगा हूं।
यूं कुछ तू मुझमें मज़हब सा पनपने लगा है।।

बारिश ए मोहब्बत में भीगने लगा हूं।
यूं लगे तू मुझपे अब्रेआब सा बरसने लगा है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

48.

मुद्दत हुई है दीदार को और जां भी है जाने को।
देख लूं तुमको तो गम ना होगा यूं मर जाने का।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

49.

खुदका पता ना है उनको अपना।
वफा के हममें जो निशां ढूंढते है।।5।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

50.

तुम्हारी नज़रों ने भी तमाशाई बनकर देखा हमें।
तुम तो अपने थे फिर क्यों भीड़ में शामिल हुए।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

51.

पल दो पल की जिंदगी है कुछपल का शोर है।
सब कुछ मिट जाना है आनी इक दिन मौत है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

52.

सुन कर मेरी दास्तां तुम कुछ भी लिख देना।
चंद अल्फाज़ मेरी जिंदगी को तुम यूं दे देना।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

53.

वफाओं का क्या खूब सिला मिल रहा है।
मुझको मेरा महबूब बेवफा कह रहा है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

54.

दर्द की हर एक आह ही कह रही है।
मुद्दत हुई लौटकर आ जा तू किसी बहाने से।।

भूलना तो चाहा मैने तेरी चाहत को।
पर मोहब्बत कहां भूलती है कभी भुलाने से।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

55.

इश्क की बीमारी वक्त से शिफा पा जाती है।
बीती जिंदगी बस यादों के निशां दे जाती है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

56.

खुशियों से भी चेहरे नम होते है।
कौन कहता है कि रोने को बस गम होते है।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

57.

हर किसी की खैरियत पूंछा करो।
अदबो लिहाज़ जीने में बड़े अहम होते है।।

मजहबे इंसा है या इंसाने मजहब। अदेबों और आलिमों से यह हम पूंछते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

58.

दिल मुसलसल आज भी तुमको याद करता है।
तन्हाई के तसव्वुर में ये तुमसे ही बात करता है।।

ये मेरी परेशां जिन्दगी तुम्हारे ही निशां ढूंढती है।
तू बड़ी दूर होकर भी मेरे दिल के पास रहता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

59.

ये जिंदगी इश्क में वफा ए दिल मांगती है।
कभी तन्हाई तो कभी महफिल चाहती है।।

इधर उधर ये बंजारों सी अब तक बीती है।
ज़िंदगी अपने सफर की मंजिल चाहती है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

60.

हो सात समंदर पार फिर भी बड़े ही करीबे दिल लगते हो।

गुजरे ज़माने वाले तुम आज भी मेरा मुस्तकबिल लगते हो।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

61.

तेरे इश्क में आशिकी भी जैसे तमाशा बन गई।
रात भर रोकर शबनम भी लगे शरारा बन गई।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

62.

खरीद कर हाथों से बने उनके मिट्टी के सारे ही दिये।
इक अमीर ने गरीबों के घर भी चश्में चरागा कर दिया।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

63.

तूफानों में कश्ती को साहिल से लगते देखा है।
देर लगी पर मेहनत को मंज़िल से मिलते देखा है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

64.

वक्त ने देखो हमको क्या से क्या कर दिया है।
समन्दर जैसे थे हम हमको सेहरा कर दिया है।।

तेरी चाहत का जो कतरा दिलमें रह गया था।
आज फिर देखो वो हमको परेशां कर गया है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

65.

यूं तो हर किसी पर ही खुदा गालिब होता है।
इक वही है जो यहां सबका मालिक होता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

66.

सबके ही आशियानें रोशनी से झिलमिला रहे हैं।
मेरे घरको बद नसीबी के काले अंधेरे सता रहें हैं।।

खुदाया ऐसी क्या खता हो गई ज़िंदगी में मुझसे।
हर दिल में चश्मे चरागा है हमको गम रुला रहें हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

67.

इक मेरी ही कश्ती फंसी है इस तूफाने समंदर में।
बाकी सब ही अपनी कश्तियां किनारे लगा रहे है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

68.

बच्चो को कैसे समझाऊं क्यूं नही लाया मैं खिलोने।
हालात भी जैसे मेरी गरीबी मज़ाक उड़ा रहे हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

69.

चलो एक दीप मानवता का आज स्वयं के अंदर प्रज्वलित करते है।
यूं खुद के असुर को मारकर पुनः स्वयं को फिर से निर्मित करते हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

70.

एक मुद्दत हुयी है हमको हम ना हंसे हैं।
हंसते भी कैसे ज़िंदगी ने इतने गम ही दिए हैं।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

71.

बातों-बातों में दिल गमज़ादा हुआ।
जब भी ज़िक्र आया तेरा फंसानें में।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

72.

प्रेम निश्छल और मन दरपन सा होता है बहन का।
इक यही रिश्ता है जिसमे अक्स दिखता है बचपन का।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

73.

साया भी अपना अब हमसे बेवफाई करने लगा है।
गर हो आमद अंधेरे की तो ये भी ना साथ देता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

74.

पता है तुम बेवफाई करोगे हमसे फिर भी उम्मीद का दामन थामें बैठे हैं।

शायद खुदा पूरी ही करदे तमन्ना दिल की तुमको दुआओं में मांगें बैठे है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

75.

कुछ यादें आज भी जिन्दा है सीने में।
सदा ही रहेंगी ये जिंदगी भर जीने में।।

एक हम थे जो तुमपे यूं मर मिटे थे।
तुम बेवफ़ा निकले रिश्ता निभानें में।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

76.

सारी खुशियां बेवफ़ा होती है गम वफा करते हैं।
ये आकर चली जाती है साथ गम सदा रहते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

77.

बयां क्या करें हम उनको जुबां से वो बदनाम हो जायेगे।
इसीलिए अक्सर ही हम कागज़ पर उनको लिखा करते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

78.

ना पूंछ जिन्दगी जीने का सलीका उन लोगों से।
कुछ लोग हो गम या खुशी हमेशा हंसा करते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

79.

हम दुआएं हर दिल को देते है।
फिर क्यों गम हमको मिलते है।।

बदस्तूर दर्दों में हम जी रहे हैं।
क्या ज़िंदगी इसी को कहते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

80.

कुरान की आयतों सा वो हमको लगता है।
दिन-रात दिल उसको ही हिफ्ज़ करता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

81.

आकर देखलो इस ज़िंदगी ने जानें कितने ही रंग बदले है।

पर तुम्हारी मोहब्बत को हम आज भी दिल से ना भूले हैं।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

82.

कुछ नए ख़्वाब गमलों में बोते हैं।
चलकर हंसाए उनको जो रोते हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

83.

तुममें हममें कुछ तो मुख्तालिफ बातें हैं।
फसलें दरम्यां हुए जीनें को बस यादें हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

84.

यहां पे हर मज़हब की ही पहचान मुख्तलिफ है।
किसी की अ किसी की A किसी की अलिफ है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

85.

दिल के सब जज़्बात अल्फाजों से ना बयां होते हैं।
आशिकी में मिले ज़ख्म सदा ही दर्द दिया करते हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

86.

यूं मरनें मारनें वाले कभी जन्नत नही है पाते।
खुदा के जहां में नेक बंदे मोहब्बत है लुटाते।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

87.

खुद के वजूद को हम हमेशा दूसरों में ढूंढते हैं।
कभी देखा ना हमने खुद में जहां हम रहते हैं।।

खुद के वजूद को तुम हमेशा दूसरों में ढूंढते हो।
कभी देखा ना तुमने खुद को जहां तुम रहते हो।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

88.

इस ज़िंदगी में कुछ ज्यादा ना कुछ कम होता है।
इसकी हर सांस में बस खुशी और गम होता है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

89.

इन अश्कों की होती खास कहानी है।
तुम समझो तो जज़्बात वर्ना पानी है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

91.

काश तुम्हारे दीदार ए वक्त हम अपने दिल से लड़ जाते।
तो ना होता ये बर्बादी का आलम ना हम आशिक कहलाते।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

92.

महरूम है उजालों से इक शम्मा जलाते हैं।
महरूम हैं उजालों से बस्ती के
चांद तारों से कहकर उनके घर को सजाते हैं।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

93.

जो कुछ मिला है इस जिन्दगी में उसी में निभा।
गुलशन के हर फूल को खुशबू होती नही अता।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

94.

यहां हर किसी का अपना एक जुदा ख्याल होता है।
ये कोई जरूरी नहीं है कि तुम मेरी हर बात ही मानो।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

95.

हरपल ही हम अपने लबों पे हंसी सजाए रखते है।
इस तरह हम सबसे ही अपने गम छुपाए रखते है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

96.

खुशबुओं ने फूलों से अपना रिश्ता तोड़ा है,,,
देखो परिंदों ने भी शाखों से नाता तोड़ा है,,,
हवाएं भी बड़ी गमगीन होकर चल रही है,,,
जबसे तू इस कदर बारिश की तरह रोया है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

97.

हमारे तुम्हारे ख्याल मुख्तलिफ है।
अगर तुम पूरब से हो तो हम भी पश्चिम है।।

ये माना की तुम हंसी हो बहुत ही।
तो हम भी आशिकी में मुर्शिदे कामिल है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

98.

ज़िंदगी जाने कैसा तेरा ये सफर है।
इक मुद्दत से चल रहे है मंजिल का ना पता है।।

लहरों ने भी कर ली हमसे दुश्मनी।
कब से तूफां से लड़ रहे है साहिल ना मिला है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

99.

जिन्दगी के मुकद्दर में मुकद्दर ना था।
यूं तू दूर चला जायेगा ये भरम ना था।।

तुम चाहते तो ये सफर साथ कटता।
जिंदगी जीने में इतना भी गम ना था।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

100.

लोगों के ख्याल हुए मुख्तलिफ है।
गर एक अ है तो दूसरा अलिफ है।।

✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️

Language: Hindi
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सात जनम की गाँठ का,
सात जनम की गाँठ का,
sushil sarna
तिरंगा
तिरंगा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
अंदाज़ ऐ बयाँ
अंदाज़ ऐ बयाँ
Dr. Rajeev Jain
4913.*पूर्णिका*
4913.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
फ़ायदा क्या है यूं वज़ाहत का,
फ़ायदा क्या है यूं वज़ाहत का,
Dr fauzia Naseem shad
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*प्रणय*
माॅ
माॅ
Santosh Shrivastava
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