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31 Mar 2024 · 1 min read

अब भी कहता हूँ

तुम लौटा नहीं सकती
अगर डूबती हुई शाम
वो सुहानी सुबह
वो नींद, वो ख्वाब
जो आया था चुपके से
अहसासों के आँगन में
तो लौटाने को
तुम क्यों हो बेताब
वो किताब, वो कलम
वो खत, वो ख्याल
इन सारी चीजों को
तुम जरा खंगाल,
जिसे कहा था मैंने
अब भी कहता हूँ
कुछ इन्हें भी सम्हाल।

काव्य-संग्रह : ‘पनघट’ में संकलित
रचना की चन्द पंक्तियाँ।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 34 Views
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