अच्छा लगा
मुद्दतों बाद शफ़क़ बूक-ओ-मगर अच्छा लगा
आप जिस नज़र से देख रहे नज़र अच्छा लगा
रंज अफ़्सुर्दगी अज़ाब दर्द सब मरहम हुआ
उफ़ आपसे टकराना सर-ब-सर अच्छा लगा
वैसे तो देखता रहता फ़क़त रु आपका वैसे
जुल्फ़ ए परेशान में यूँ मू-कमर अच्छा लगा
मुझको इल्म है ढह जायेगा आज न कल लेकिन
आपके संग ख्वाबों का ये कच्चा घर अच्छा लगा
सोच सोच कर ग़ज़ल नग्में कह रहा मैं कामिल
आख़िर कोई इतना मुझको क्यों कर अच्छा लगा