*होय जो सबका मंगल*
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जंगल, नदिया, खेत हैं, बाग, ताल अरु कूप।
‘भारत’ ठंडी छाँव है, किन्तु ‘इंडिया’ धूप।।
किन्तु इंडिया धूप, छाँव तक को मन तरसे,
प्रीत-नेह का मेह, यहाँ फिर कैसे बरसे?
कह ‘पूनम’ कर कर्म, होय जो सब का मंगल,
नगर, गाँव तो दूर कि हर्षाये वन, जंगल।।