Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jul 2021 · 2 min read

बेजुबान और कसाई

बेजुबान और कसाई
~~~~~~~~~~~~~
(एक याचना)
बीच सड़क पर डटे,बेज़ुबान बकरे और कसाई,
हो रही थी मौनभाव में, अस्तित्व की लड़ाई ।
कसाई डोर खींच रहा, पर बकरे ने भी टांगे अड़ाई,
बेजुबान बकरे ने तब, मौनभाव में आवाज लगाई_

मृत्यपाश की डोर बांधकर ,
कहा ले जा रहे घातक अब तुम ?
बीच सड़क घिसियाते तन धन,
किसी अनहोनी से ग्रसित हूँ मैं तो,
तड़प रहा तन-मन,कण-कण।

मिमीयाते क्रन्दन स्वर में वो,
अटक-पटक धरा पर धर को।
प्राणतत्व किलोल रोककर,
प्रश्न अनुत्तरित मौनभंगिमा में,
करता अपने घातक हिय से _

मैं छाग बेजुबान छोटी सी काया,
भरमाती हमको न माया।
तृणपर्णों से क्षुधा मिटाती,
ना कोई अरमान सजाती,
मैं तो बुज़ हूं तुम क्यों बुज़दिल हो।

सुबह परसों जब नींद खुली थी,
देखा अपने देह गेह में।
वंचित था मैं मातृछाया से,
मन ही मन सिसकता तन मन।
छूटे मेरे प्राणसखा सब,
बिछुड़े मेरे उर के बांधव।

कल ही तेरे बालवृंद संग ,
प्रेम-ठिठोली की थी मैंने।
वो मेरे कंधे पर सर रख,
मौन की भाषा समझ रहा था।
दांत गड़ा मै उसे चिढाता,
वो मेरे फिर कान मचोड़ता।

उठापटक होता दोनों में,
वो मेरे फिर तन सहलाता।
प्यार की भाषा पढ़ते मिलकर,
आंख-मिचौली करते मिलकर,
कितना हर्षोल्लास का क्षण था।
स्नेहवृष्टि में दोनों भींगते,
शुन्य गगन आनन्द खोजते।

जुबां नहीं मेरे तन में है,
पर भाव नहीं तेरे से कम हैं।
देख रहा अब प्रभु दर्पण में,
अपने जीवन की परछाई को।
कतिपय अंत निकट जीवन का,
पूछ रहा फिर भी विस्मय से।

क्या तेरा मन नहीं आहत होता ?
मेरे प्राणों की बलि लेने से।
क्या तेरा तन नहीं विचलित होता ?
तड़पते तन में उठती आहों से।
माना व्याघ्र है निर्जन वन में,
तुम तो मनुज हो इस उपवन में।

पुछ तो आओ सुत स्नेहसखा से,
प्रेम सुधामयी उन कसमों को,
निर्दोष पलों की याद दिलाकर।
फिर प्राणों की आहुति लेना।।
तब तक मैं भी अपनी जिद में,
बैठा रहूंगा इस धरा पकड़कर ।

क्यों जिद है तुझे,मुझे हतने की,
वंश निर्मूल मेरा करने की।
छोड़ो अपनी जिद भी अब तुम,
बंधन तोड़ो मेरा अब तुम।
जब तुम मेरी पीड़ा समझोगे,
प्रभु भी तेरी पीड़ा समझेंगे।

जब तुम मेरी पीड़ा समझोगे,
प्रभु भी तेरी पीड़ा समझेंगे।

मौलिक एवं स्वरचित

© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १४ /०७/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
घातक = हत्यारा
किलोल = खुशी का भाव
हिय = मन, ह्रदय
छाग = बकरा, बकरी का बच्चा
तृणपर्णों = घास, पत्तियाँ
बुज़ = बकरा, डरपोक
गेह = घर, रहने की जगह
उर = हृदय, छाती
बांधव = भाई बंधु
सुत = पुत्र
हतना = हत्या करना
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Language: Hindi
14 Likes · 9 Comments · 4317 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from मनोज कर्ण
View all
You may also like:
💐प्रेम कौतुक-349💐
💐प्रेम कौतुक-349💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
#दोहा
#दोहा
*Author प्रणय प्रभात*
*धनतेरस का त्यौहार*
*धनतेरस का त्यौहार*
Harminder Kaur
हिंदी
हिंदी
Mamta Rani
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
काव्य में सहृदयता
काव्य में सहृदयता
कवि रमेशराज
दिल ये इज़हार कहां करता है
दिल ये इज़हार कहां करता है
Surinder blackpen
कैसे हमसे प्यार करोगे
कैसे हमसे प्यार करोगे
KAVI BHOLE PRASAD NEMA CHANCHAL
रूबरू मिलने का मौका मिलता नही रोज ,
रूबरू मिलने का मौका मिलता नही रोज ,
Anuj kumar
"कोई तो है"
Dr. Kishan tandon kranti
कम्प्यूटर ज्ञान :- नयी तकनीक- पावर बी आई
कम्प्यूटर ज्ञान :- नयी तकनीक- पावर बी आई
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
वक्त-वक्त की बात है
वक्त-वक्त की बात है
Pratibha Pandey
हदें
हदें
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
My City
My City
Aman Kumar Holy
आरम्भ
आरम्भ
Neeraj Agarwal
चिंतित अथवा निराश होने से संसार में कोई भी आपत्ति आज तक दूर
चिंतित अथवा निराश होने से संसार में कोई भी आपत्ति आज तक दूर
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
मार्मिक फोटो
मार्मिक फोटो
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
कुछ मन्नतें पूरी होने तक वफ़ादार रहना ऐ ज़िन्दगी.
कुछ मन्नतें पूरी होने तक वफ़ादार रहना ऐ ज़िन्दगी.
पूर्वार्थ
ईश ......
ईश ......
sushil sarna
जीवन है पीड़ा, क्यों द्रवित हो
जीवन है पीड़ा, क्यों द्रवित हो
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
वर दें हे मॉं शारदा, आए सच्चा ज्ञान (कुंडलिया)
वर दें हे मॉं शारदा, आए सच्चा ज्ञान (कुंडलिया)
Ravi Prakash
देने के लिए मेरे पास बहुत कुछ था ,
देने के लिए मेरे पास बहुत कुछ था ,
Rohit yadav
खामोश रहना ही जिंदगी के
खामोश रहना ही जिंदगी के
ओनिका सेतिया 'अनु '
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Being an ICSE aspirant
Being an ICSE aspirant
Sukoon
*** लहरों के संग....! ***
*** लहरों के संग....! ***
VEDANTA PATEL
सुकर्मों से मिलती है
सुकर्मों से मिलती है
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
हर शख्स माहिर है.
हर शख्स माहिर है.
Radhakishan R. Mundhra
कर्म और ज्ञान,
कर्म और ज्ञान,
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
"प्यासा" "के गजल"
Vijay kumar Pandey
Loading...