Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jun 2023 · 2 min read

केतकी का अंश

आज अंश
कुछ ज्यादा ही उदास
हो रहा था
अपनी मां केतकी को
द्वार तक छोड़ने भी
नहीं आ रहा था।

केतकी के अतिरेक
पुचकारने के बाद भी
वह आंगन से आगे
टस से मस नहीं हो रहा था।
थक हार कर केतकी
ने ज्यादा समय होते देख
एक फ्लाइंग किस
देते हुए स्वयं को खुद ही
अपने क्रश के लिए
विदा कर लिया था।

रास्ते में अपने भाग्य पर
रोने को विवश थी
यह कैसी विडम्बना थी
अपने बच्चे को अनाथ छोड़
कर दूसरे के बच्चे को
जो पालने चली थी।

अंश की उदास आंखे
से अनवरत आंसू
बह रहे थे
पर वह मासूम एक
मां की मजबूरी को
भी कैसे समझ सके।

नित्य तो वह मां से
दूरी सहन कर ही लेता था
पर आज उसने मां से
अपने जन्मदिन का
वास्ता दिया था
पर मां कि विवशता ने
उसे भी मौन कर दिया था।
इतनी मुश्किल से मिली
मां की क्रश की नौकरी
कहीं छूट न जाय
ऐसा समझ उसने मां से
मौन विदा लिया था।

शायद अंश को
पता था कि जन्मदिन
के चोचले बस अमीरों
के घर की सम्पदा है
उन जैसो के भाग्य में तो
बस मुफलिसी ही वदा है।

क्रश में आज सारांश
के मां बापू ने
उसके जन्मदिन पर एक
पार्टी का आयोजन रखा था
केतकी के बेहतर
व्यवहार के लिए उन्होंने
उसे भी एक उपहार दिया था।

पर अपने अंश कि उपेक्षा
व दूसरे की देखभाल
करते केतकी का तन
आज एकदम थक चला था
क्रश का काम था कि आज
समाप्त होने के नाम ही
नहीं ले रहा था।

और दिनों के अपेक्षा
केतकी को आज
कुछ ज्यादा ही देर हो गयी
अंश के लिए बिस्कुट व
एक नए बनियान के चक्कर में
वह और लेट हो गयी ।

घर जाने की शीघ्रता में
उसका कलेजा उछलने लगा था
पर घर पहुंचते ही
अंश को आँगन में पड़ा देख
उसका जी धक् से हो गया था।

आज के जीवन का
यह एक सनातन सत्य है
टूटते परिवार व
छीजते रिश्तों के कारण
वर्तमान भविष्य से
भयभीत है।

आज जीवन जिया नहीं
जा रहा है
बल्कि किसी तरह काटा
व निभाया जा रहा है।
निर्मेष
क्षद्म हंसी को मुखौटा लिये
सब फिर रहे है
अंदर के घाव से रक्त
अनवरत रिस रहे है।

निर्मेष

285 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अर्ज किया है
अर्ज किया है
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
Rj Anand Prajapati
घर आना नॅंदलाल हमारे, ले फागुन पिचकारी (गीत)
घर आना नॅंदलाल हमारे, ले फागुन पिचकारी (गीत)
Ravi Prakash
चाहे अकेला हूँ , लेकिन नहीं कोई मुझको गम
चाहे अकेला हूँ , लेकिन नहीं कोई मुझको गम
gurudeenverma198
Are you strong enough to cry?
Are you strong enough to cry?
पूर्वार्थ
भाई लोग व्यसन की चीज़ों की
भाई लोग व्यसन की चीज़ों की
*Author प्रणय प्रभात*
जाने वाले का शुक्रिया, आने वाले को सलाम।
जाने वाले का शुक्रिया, आने वाले को सलाम।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
,,,,,,,,,,?
,,,,,,,,,,?
शेखर सिंह
"इशारे" कविता
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
चन्द्रयान..…......... चन्द्रमा पर तिरंगा
चन्द्रयान..…......... चन्द्रमा पर तिरंगा
Neeraj Agarwal
मिलना तो होगा नही अब ताउम्र
मिलना तो होगा नही अब ताउम्र
Dr Manju Saini
💐प्रेम कौतुक-442💐
💐प्रेम कौतुक-442💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
"सोचो ऐ इंसान"
Dr. Kishan tandon kranti
-- लगन --
-- लगन --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
कविता - 'टमाटर की गाथा
कविता - 'टमाटर की गाथा"
Anand Sharma
राम लला की हो गई,
राम लला की हो गई,
sushil sarna
सबने हाथ भी छोड़ दिया
सबने हाथ भी छोड़ दिया
Shweta Soni
वह जो रुखसत हो गई
वह जो रुखसत हो गई
श्याम सिंह बिष्ट
ख़ामोशी से बातें करते है ।
ख़ामोशी से बातें करते है ।
Buddha Prakash
अमीर
अमीर
Punam Pande
आत्मज्ञान
आत्मज्ञान
Shyam Sundar Subramanian
कहो तुम बात खुलकर के ,नहीं कुछ भी छुपाओ तुम !
कहो तुम बात खुलकर के ,नहीं कुछ भी छुपाओ तुम !
DrLakshman Jha Parimal
करूँ प्रकट आभार।
करूँ प्रकट आभार।
Anil Mishra Prahari
सुनो ये मौहब्बत हुई जब से तुमसे ।
सुनो ये मौहब्बत हुई जब से तुमसे ।
Phool gufran
कहानी-
कहानी- "हाजरा का बुर्क़ा ढीला है"
Dr Tabassum Jahan
हिज़्र
हिज़्र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
आंखों में नींद आती नही मुझको आजकल
आंखों में नींद आती नही मुझको आजकल
कृष्णकांत गुर्जर
*हनुमान जी*
*हनुमान जी*
Shashi kala vyas
आत्मनिर्भरता
आत्मनिर्भरता
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ठंड
ठंड
Ranjeet kumar patre
Loading...