Smriti Singh 58 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Smriti Singh 21 Oct 2024 · 1 min read कब्र से उठकर आए हुए लोग, कब्र से उठकर आए हुए लोग, जिंदगी का वजूद समझते हैं, मैं ख़ म खा़ परेशान हूं, जिंदगी से तो सब घबराते हैं Quote Writer 28 Share Smriti Singh 4 Aug 2024 · 1 min read जिंदगी खफा हो के किनारे बैठ गई है जिंदगी खफा हो के किनारे बैठ गई है देखी तो है पर पहचानती नहीं Quote Writer 1 68 Share Smriti Singh 21 Jun 2024 · 1 min read तजुर्बे से तजुर्बा मिला, तजुर्बे से तजुर्बा मिला, आंधियों की सह में, फिर उड़ना हुआ, Hindi · Quote Writer 72 Share Smriti Singh 14 May 2024 · 1 min read वो हमको देखकर मुस्कुराने में व्यस्त थे, वो हमको देखकर मुस्कुराने में व्यस्त थे, हम उनको देखकर इतराने में व्यस्त थे Quote Writer 111 Share Smriti Singh 27 Jan 2024 · 1 min read जिंदगी उधार की, रास्ते पर आ गई है जिंदगी उधार की, रास्ते पर आ गई है उड़ती थी जो तितलियां, एक बक्से में आ गई है छत की मुंडेर पर भी, घुट रहा है दम आंख मेरी फूट... Quote Writer 1 314 Share Smriti Singh 12 Oct 2023 · 1 min read ओढ़कर कर दिल्ली की चादर, ओढ़कर कर दिल्ली की चादर, पैर सिकुड़ कर बैठा है, हरियाणा गुड़गांव के अंदर Quote Writer 291 Share Smriti Singh 18 Jun 2023 · 1 min read खुद से सिफारिश कर लेते हैं खुद से सिफारिश कर लेते हैं अगवा हुई जिंदगी को, आजादी का भ्रम देते हैं चौराहे पर खड़े होकर सोचते हैं, किधर जाएं कुछ भटके हुए लोग, वहीं ठहर जाने... Quote Writer 2 581 Share Smriti Singh 18 Jun 2023 · 1 min read फिर जिंदगी ने दम तोड़ा है फिर जिंदगी ने दम तोड़ा है हर शाख पर गम छोड़ा है कुरेद कर जा चुके हैं जख्म मेरे और वक्त का मरहम छोड़ा है क्या याद वो रखेंगे, सब... Quote Writer 1 3 572 Share Smriti Singh 17 Jun 2023 · 1 min read फिर बैठ गया हूं, सांझ के साथ फिर बैठ गया हूं, सांझ के साथ कल की सह में झगड़ा कर बैठा, मैं आज के साथ किसे सुनाऊं हाल मैं अपना जब शिकवे हों, आप के साथ फिर... Quote Writer 1 487 Share Smriti Singh 15 Jun 2023 · 1 min read भूसा हर बार चुप नहीं रहा जाता, अब मुंह में भूसा घुसा दो, वही भूसा जो तुम्हारे दिमाग में, तुम्हारे मन में, देह में भरा पड़ा है इतने हल्के होते जा... Poetry Writing Challenge 2 1 137 Share Smriti Singh 15 Jun 2023 · 1 min read ताकतवर औरतें पैर दबाती औरत क्षीर सागर में शेषनाग के नीचे ब्रह्मांड की सबसे अमीर औरत धरती पर वही औरत एक राजा की रानी बनी और जंगल में युवराज जन्मी और किसी... Poetry Writing Challenge 2 107 Share Smriti Singh 15 Jun 2023 · 1 min read बुझा टांग कर रूह को, जिस्म हम खींचे हुए सर्दियों में आंख मसलते , सुबह हम उठे, कुछ खीझे हुए, वो बचपन याद आता है, जो हम घर पहुंचे, शाम को... Poetry Writing Challenge 1 235 Share Smriti Singh 15 Jun 2023 · 1 min read पड़ा हुआ हूँ छित्त -विछित्त मैं पड़ा हुआ हूँ अपने घर से लाओ चाकू थाली चीर -चीर ले जाओ, चमड़ी मांस नहीं है, इसमें लात मारकर जाओ न महक रहा रक्त मेरा, और... Poetry Writing Challenge 202 Share Smriti Singh 15 Jun 2023 · 1 min read अचेतना से चेतना तक हृदय के निलय- आलिंद को मंद पड़ने न दो चिंघाड़ती, दहाड़ती आवाज न सही पर बोलती हुई जिह्वा को रुकने न दो मार्मिक दृश्य हैं, दशा दुर्दशा है, इक टांग... Poetry Writing Challenge 1 179 Share Smriti Singh 15 Jun 2023 · 1 min read धुंआ डरी आंख नहीं थी, डरी शक्ल थी धुंआ बहुत था पर आग नहीं थी, सुबह न जाने किसकी, राख बहुत थी, हम डरने के अभ्यस्त थे, माहौल था, पर डरने... Poetry Writing Challenge 197 Share Smriti Singh 15 Jun 2023 · 1 min read धोखा इक धोखा, जिसमें ‘खा’ नहीं है सिर्फ ‘धो’ है, जिसमें सत्ता वही है पर खुद को लोकतंत्र से धो रहा है, इक धोखा, जिसमें ‘धो’ नहीं है सिर्फ ‘खा’ है,... Poetry Writing Challenge 216 Share Smriti Singh 11 Jun 2023 · 1 min read मैं सहज हूं मैं सहज हूं, हर बात में सहज हूं नोच लो, खरोच लो, चीर दो घसीट लो, दबोच लो, ढकेल दो या उठाने फेंक दो, वासना की हद तक, तुम मेरा... Poetry Writing Challenge 1 92 Share Smriti Singh 11 Jun 2023 · 1 min read नारी नीर कुछ लोग' चाहतें हैं, हम औरतें पानी की तरह रहें, आयतन कुछ भी हो, पर हर आकार में ढ़लें, कोई पत्थर भी मारे, तो भी लहरायें, सारे रंग में रंग... Poetry Writing Challenge 94 Share Smriti Singh 11 Jun 2023 · 1 min read हम गाली हैं कुछ ना कहना दुनिया से, कह देना हम गाली हैं आगे- आगे दुनिया वाले, पीछे हम मवाली हैं ढेरे पड़े हैं सड़कों पे हम , भरी हुई इस दुनिया में... Poetry Writing Challenge 1 87 Share Smriti Singh 28 May 2023 · 1 min read इस क्षितिज से उस क्षितिज तक देखने का शौक था, इस क्षितिज से उस क्षितिज तक देखने का शौक था, पर मेरी मां का आसमा तेरे आंगन की नाप का था कोई पहाड़ ना था लांघने को, लांघ सकती,ये घर... Quote Writer 1 317 Share Smriti Singh 23 Mar 2023 · 1 min read गुमराह होने के लिए, हम निकल दिए , गुमराह होने के लिए, हम निकल दिए , यारों , फिर अपने दिल के कहे पे चल दिए Quote Writer 1 254 Share Smriti Singh 15 Jan 2023 · 1 min read नजर इतना ठहर के न देखो मुझे कि सब कुछ भूल जाने पर भी, तुम्हारी नजर याद रह जाती है Hindi 115 Share Smriti Singh 15 Jan 2023 · 1 min read मेरी जिंदगी को, मेरा ख्याल आया है एक अर्से बाद, मेरी जिंदगी को, मेरा ख्याल आया है मुझे छोड़कर, मेरी बर्बादी का, हर किसी पर इल्जाम आया है Hindi 110 Share Smriti Singh 21 Oct 2022 · 1 min read दर्ज जानिब,कि मैं ज़रा सा बाकी हूं कि तुम पर इतना खर्च हो गया हूं अब जाओगे तो, क्या-क्या छोड़ कर, कि तेरे अंदर तक, मैं दर्ज हो गया हूं Hindi 1 182 Share Smriti Singh 17 Sep 2022 · 1 min read डर...... डराने वालों की कोई औकात नहीं है, हम ही डरने का हुनर रखते है क्यों बेवजह शाखें हिल रही हैं, चलो इनकी खबर लेते हैं। Hindi 3 1 212 Share Smriti Singh 28 Jul 2022 · 1 min read हम पस्त हैं सूर्य पहरेदारी में व्यस्त हैं, शहर में जुगनूओं की गश्त है, तेल फैला हुआ, बाती मरोड़ी हुई, खोजते हुए, रोशनी को ,देखा! चांद तारों के साथ मस्त है Hindi · कविता 3 2 173 Share Smriti Singh 7 Apr 2022 · 1 min read ओझल रात के कहकहे में, औंधे पड़े हैं दिन के सन्नाटे सब को मालूम हैं ये गायब रास्ते, मगर ये पहचाने नहीं जाते ये गली शरीफों की नहीं है, पर शरीफ... Hindi · मुक्तक 3 2 316 Share Smriti Singh 11 Feb 2022 · 1 min read माहौल घेर कर बैठे हैं उनको शहर के तमाम लोग आग और राख की बात कर धुंआ फैलाते हैं, धुंऐ में धुंधला जाते हैं, शहर के तमाम लोग तुम खतरे में... Hindi · मुक्तक 3 2 353 Share Smriti Singh 5 Feb 2022 · 1 min read खिलाफ सियासत खेल रहा है वक्त, इक दिन नाकामयाबी का तख्ता पलट देंगे, Hindi · मुक्तक 2 2 251 Share Smriti Singh 28 Jan 2022 · 1 min read स्तम्भकार जिनको करने सवाल थे , वो तो चाटुकार थे , नौकरी हत्थे चढ़ी है, चाकरी के भर्तीयों में चर्चे बहुत हैं, धान्धली के, सिलसिले वार क्या लिखें, पन्ने बचे हैं... Hindi · कविता 2 7 240 Share Smriti Singh 11 Jan 2022 · 1 min read धुँआ - राख डरी आंख नहीं थी, डरी शक्ल थी धुंआ बहुत था पर आग नहीं थी, सुबह न जाने किसकी, राख बहुत थी, हम डरने के अभ्यस्त थे, माहौल था, पर डरने... Hindi · कविता 3 4 484 Share Smriti Singh 3 Jan 2022 · 1 min read स्पर्धा आगे बढ़ने को आतुर हैं, दो पक्ष यहां स्पर्धा में छूट गया इनका, लक्ष्य यहां द्वंद नही,न द्वेष था, बस केवल आवेश था, अनन्त परिधि में रहने वाले, इक बिंदु... Hindi · कविता 2 6 244 Share Smriti Singh 4 Dec 2021 · 1 min read सराबोर हम अंजुली लगा कर बैठे थे वो इश्क़ छलका गये, हम आंखों में देखते रह गये, वो सीने में आ गये, Hindi · शेर 2 8 483 Share Smriti Singh 4 Dec 2021 · 1 min read तलाश कोई न जाने वो शहर चाहता हूँ, कोई न पूछे वो डगर चाहता हूँ, न रुकूं ऐसा सफर चाहता हूँ, इश्क़ के मारे, नहीं है, अरे, हम बेचारे नहीं है,... Hindi · मुक्तक 4 7 332 Share Smriti Singh 22 Oct 2021 · 1 min read नारी -नीर 'कुछ लोग' कहते हैं, हम औरतें पानी की तरह रहें, आयतन कुछ भी हो, पर हर आकार में ढ़ले, कोई पत्थर भी मारे, तो भी लहरायें, सारे रंग मे रंग... Hindi · कविता 1 5 419 Share Smriti Singh 22 Oct 2021 · 1 min read सड़क पर ढेला पार्दरशी टेप है, सब के होठ पर, माथे पर सिकुड़न, जहनी निराशा मुंह छुहारे सा, आंखे भौचकी खोने लायक, कुछ नहीं पाने की कपट कल्पना का भी सुकून नहीं ,... Hindi · कविता 4 6 262 Share Smriti Singh 8 Sep 2021 · 1 min read चक्र लोग चढ़ रहे हैं, लोग उतर रहे हैं कोई रुक नहीं रहा है, न देखने के लिए, न सोचने के लिए कुछ जो रुकते भी हैं, उनको चढ़ाने वाले चढ़ा... Hindi · कविता 1 1 263 Share Smriti Singh 4 Jun 2021 · 1 min read मेरा मैं कितनी पैरवी करूं खुद की, हर बार खुद की गलतियों से तिरछा हो कर निकल जाता हूँ, खामियाें पर कभी रेशम, कभी बेलबेट चढ़ता हूं, दलील ,आध बुने स्वैटर में... Hindi · कविता 2 1 307 Share Smriti Singh 28 May 2021 · 1 min read प्रश्नवाचक चिन्ह ? जब तक ये प्रश्नवाचक चिन्ह (?) है तब तक, मै हूँ| मेरे होने का सबूत है , वरना मैं रहूंगा संसार में , पर इक रिक्तस्थान की तरह जिसकी जो... Hindi · कविता 3 2 399 Share Smriti Singh 21 May 2021 · 1 min read साफ-सुथरा धोखा इक धोखा, जिसमें 'खा' नहीं है सिर्फ 'धो' है, जिसमें सत्ता वही है पर खुद को लोकतंत्र से धो रहा है, इक धोखा, जिसमें 'धो' नहीं है सिर्फ 'खा' है,... Hindi · कविता 1 4 308 Share Smriti Singh 17 May 2021 · 1 min read निष्ठुर झकझोरते हालात हैं, उठते देखता हूँ, बगल से अपने लाश मैं, सिसकियों को न दे सका कोई आस मैं, निष्ठुरता से लिप्त, बना हूं खोखला बांस मैं, ढोंगी सा जी... Hindi · कविता 1 2 305 Share Smriti Singh 16 May 2021 · 1 min read उम्मीद की बरसात दरार पड़े मैदान, सख्त -खुरदुरे चट्टान वो सुखा हुआ आदमी घूरता है आसमान बादल, बूंद, बरसात से कोस दूर पड़ा रेगिस्तान सावन में लहरा कर बारिस, भादव में रिमझिम -रिमझिम... “बरसात” – काव्य प्रतियोगिता · कविता 5 7 363 Share Smriti Singh 24 Oct 2020 · 1 min read औकात तनिक भी नहीं है रूआब जाने कैसा है ये गुलाब, इठलाते हैं, वो अपने 'शक्ल- ओ -नाम' पर जिसने बनाई नहीं, ढेला भर भी औकात तुम इन सब की नवाबी... Hindi · मुक्तक 3 352 Share Smriti Singh 17 Sep 2020 · 1 min read है कौन सरकार तो बढ़ी, सयानी हुक्मरान की चल रही, लन्तरानी अब झण्ड नहीं, जिंदगानी सबका बन्टाधार हुआ है, जवान-जहीर हूं, पर ढ़ो रहा हूँ, अपनी जवानी खुराफात तो हुई है, पर... Hindi · कविता 2 1 510 Share Smriti Singh 14 Sep 2020 · 1 min read मै भी हूँ कोई झकझोरो, हिलाओं-डुलाओ, अटक गया है कैमरा, कोई हमें भी दिखाओ माना मै इश्तहार नहीं ,स्टार नहीं बेरोजगार हूं ,बेकार नहीं बेबाक तो मैं भी हूं, सरकार से भिड़ा भी... Hindi · कविता 4 6 539 Share Smriti Singh 2 Sep 2020 · 1 min read सहज हूँ मैं सहज हूँ, हर बात में सहज हूँ नोच लो, खरोच लो, चीर दो घसीट लो, दबोच लो, ढकेल दो या उठाने फेंक दो, वासना की हद तक, तुम मेरा... Hindi · कविता 3 1 287 Share Smriti Singh 27 Aug 2020 · 1 min read बेढ़प किनारे रख ,समझदारी कुछ अन्ट-सन्ट सा लिखते हैं भाड़ में जाये दुनिया -दारी चलो कुछ अगड़म-बगड़म सा करते हैं फरमानों की तौहीन और रिवायत की धज्जियां उड़ते हैं अपने इतमीनान... Hindi · कविता 1 584 Share Smriti Singh 9 Aug 2020 · 1 min read अवैध अवैध हूँ, बहिष्कृत, तिरस्कृत, नाम, उपनाम विहिन संसार का कर्क रोग हूँ| अबोध-सा, पर मै अवैध हूँ, न मैने चुना, न मैने कहा, फिर भी मै हूँ, जो भी मै... Hindi · कविता 5 6 371 Share Smriti Singh 31 Jul 2020 · 1 min read "प्रेमचन्द" कथा सम्राट बीस वर्ष की दरिद्रता की कहन, शर्म भी न कर सकूँ, मैं वहन घीसू, माधव तृप्त हुए, खा कर, बुधिया का 'कफ़न' सद्गति ने दिखलाया है, दलित एकता का गठन... Hindi · कविता 6 6 372 Share Smriti Singh 29 Jul 2020 · 1 min read दो दिन की छुट्टी मुँह फाड़ कर बैठी महामारी तलवार बनाऊँ द्विधारी बकरा चिल्लाये अल्लाह -राम, और वो चिल्लाये राम-राम, हमको प्यारी कुर्बानी, मैं तो ईंटा रख कर मानूं हाँ! दो दिन की छुट्टी... Hindi · कविता 8 8 481 Share Page 1 Next