कविता: "भूखे थे, कुछ खिला दो, मैं फ़कीर तुम-सा"
कविता: "भूखे थे, कुछ खिला दो, मैं फ़कीर तुम-सा" भूखे थे, कुछ खिला दो, मैं फ़कीर तुम-सा, ना तिजोरी है, ना मोती, ना जमीं-ख़ुदा-सा। चूल्हा भी है ठंडा, और थाली...
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