“”हमर गाँव””

एक नई छत्तीसगढ़ी कविता — गाँव के जीवन पर आधारित:
“हमर गाँव”
हमर गाँव के बात निराला,
हरियर खेत अउ बगिया वाला।
माटी म खुशबू कस परे,
मन ल भा जाथे हे सबले बड़े।
रुख राई के छाँव म बैइला चलाथे,
आऊ दिन-रात किसान ह पसीना बहाथे।
नदियां के किनारे म लइका खेलय,
चिराई गाथे मीठ सुर म मेलय।
फूलचुहुरी, तिहार के रौनक,
सोंधी चिरई-चिरगुन के गुनक।
नाचा-गाना गम्मत, आऊ मांदर के ताल,
एही म बसे हे हमर छत्तीसगढ़ के गाथा विशाल।
बड़का शहर ले अलग दुनिया,
पिरित, अपनापन, बिन दुरिया।
हमर गाँव म हे जिनगी के सार,
येला छोड़बो नइ, चाहे कतको होय संसार।
✍️📜जितेश भारती