तोर माया सुघ्घर दाई

एक छत्तीसगढ़ी कविता है –”तोर मया सुघ्घर हे दाई” – जो माँ के प्यार और ममता को समर्पित है:
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तोर मया सुघर है दाई
— एक छत्तीसगढ़ी कविता
तोर मया सुघ्घर हे दाई,
जीनगी भर के संगी मितान।
नान्हेपन मा मोला अंचरा ओढ़ाय,
सिखाय झन डर, मय तोर सियान।
भूख लगय त पहिली खिलाय,
तय अपन भूख ला छुपाय।
झन होय मोला दुख कभू,
हर बेरा देवी बन आय।
कभु गोदी मा लेके लोर पोछस,
कभु कहानी सुनाय रात।
दुनिया ल लड़ डारे तें,
जइसे मया के रखवइया हाथ।
तोरे बिना का होही दाई,
अंधियार म टिमटिमाय परिया।
तें ह सूरुज बन के आय,
जीवन के उजियार भरईया।
तोर मया अमर अऊ गजब,
बोलव त नइ सकंव पूरा।
दाई तें ह भगवान के रूप,
तोरे सेवा म जीवन हे अधूरा।
जितेश भारती