।। दाई के मया ।। { छत्तीसगढ़ी कहानी }
जरूर! नीचे एक लंबी छत्तीसगढ़ी कहानी है – “दाई के मया”, जिसमें पाँच पात्र हैं। कहानी ममता, संघर्ष, और इंसानियत के मोल के ऊपर आधारित हे।
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कहानी – दाई के मया
पात्र:
1. दाई (सरस्वती बाई) – गाँव के बुजुर्ग अउ सबके दुलारी महिला
2. रमेश – गरीब किसान, ईमानदार अउ मेहनती
3. गीता – रमेश के पत्नी, सरल अउ सहनशील
4. पिंकी – रमेश अउ गीता के छरिहा लइका
5. राजू मास्टर – गाँव के स्कूल मास्टर, समझदार अउ दाई के खास
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भाग 1 – दाई के झोंपड़ी
जंगल के कोती बसे छोटे गाँव “सीतापुर” म सरस्वती बाई के झोंपड़ी रहिस। गाँव के मनखे ओला “दाई” कहिके पुकारथें। ओकर खुद के कोनो नइ रहिस – न बेटा, न बहू, न पोता – फेर पूरा गाँवच ओकर परिवार रहिस। दाई हर बरसों ले गाँव म जनम लेय लइका ले बियाह तक, अउ बीमारी ले मउत तक, सब म अपन भुंइयाँ लगा दे रहिस।
ओकर झोंपड़ी म हमेसा चूल्हा जलत रहय – कोनो भूख म होही, तो दाई के घर म जरूर कुछू मिल जाही।
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भाग 2 – रमेश के दुःख
रमेश, गाँव के एक गरीब किसान, अपन फसल बर भगवान जइसे मेहनत करय। ओकर घर म ओकर पत्नी गीता अउ छरिहा बेटी पिंकी रहिन। दू साल ले सूखा परत रहय, खेत म दाना तक नइ उपजत रहय। ओ साल रमेश हर कर्ज म डूब गे रहय, अउ ऊपर ले पिंकी अचानक बीमार पड़ गे।
पिंकी दिन-दिन कमजोर होवत रहिस। रमेश अउ गीता डाक्टर के पास जाय बर पैसा नइ रहिस। गाँव म कोनो मदद नइ करय। रमेश के आँख म आसू भर गे।
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भाग 3 – दाई के दरबार
गीता अपन बेटी ला गोदी म धरके दाई के झोंपड़ी पहुँचिस। दाई हर ओकर हालत देखके बड़ दुखी होइस। बिना कोनो पूछताछ के अपन पुराना संदूक म ले एक थैली निकालिस – जेम म सालों के बचाय धन रहिस।
दाई – “बेटी, ले जा ये पइसा। पिंकी ला डॉक्टर करा। ओकर जान हमर जिम्मेदारी आय।”
राजू मास्टर, जऊन दाई के हर बात म साथ देय, वो हर अपन सायकिल ले रमेश अउ गीता ला शहर के अस्पताल ले गे।
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भाग 4 – पिंकी के जिंदगी
अस्पताल म इलाज के बाद पिंकी धीरे-धीरे ठीक होइस। रमेश के आँख म आशा के उजास फेर लउकत रहय। वो हर भगवान ला नइ, दाई के मया ला परनाम करिस।
कुछ महीना बाद रमेश के खेत म पानी गिरिस, फसल जबरदस्त होइस। वो अपन सारा उगाय धान ले दाई के घर गे – “दाई, ये तोर करज हे, म तोला चुकाना चाहथंव।”
दाई मुस्कराइस – “बेटा, मया म करज नइ होय। मंय त मोला मिल गे – पिंकी के हँसी म।”
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भाग 5 – दाई के अंत
कई बरस बीत गे। पिंकी पढ़ई म तेज रहय। दाई हर अब बुढ़ा हो गे रहिस। एक दिन, ओ हर चुपचाप अपन खाट म सुते-सुते चल बसिस।
गाँव के सब मनखे जुट गे। रमेश, गीता, पिंकी, राजू मास्टर – सबके आँख म आसू रहय।
पिंकी दाई के फोटो के सामने अपन किताब धरके कहिस – “दाई, तोर मया म हम पढ़बो, डॉक्टर बनबो, अउ तोर जस दूसर मनखे मन के मदद करबो।”
गाँव म आज घलो लोग कहिथे – “दाई तो चल दिस, फेर ओकर मया आज घलो सीतापुर म जिन्दा हे।”
।। समाप्त ।।