मुक्तक
मानचित्र को काट रहे हों, भारत माँ को बाँट रहे हों,
ग़ैर तिरंगा फाड़ रहे हों, अपने झण्डे गाड़ रहे हों,
जब सीने पर ही आ बैठें, भारत माता के हत्यारे,
छोड़ कबीरा का सुर तब लिखने पड़ते हैं नारे |
मानचित्र को काट रहे हों, भारत माँ को बाँट रहे हों,
ग़ैर तिरंगा फाड़ रहे हों, अपने झण्डे गाड़ रहे हों,
जब सीने पर ही आ बैठें, भारत माता के हत्यारे,
छोड़ कबीरा का सुर तब लिखने पड़ते हैं नारे |