Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Apr 2017 · 3 min read

हिटलर ने भी माना सुभाष को महान

अपने समय के सर्वोच्च क्रान्तिकारी सुभाषचन्द्र बोस ने फ्रांसीसी विद्वान रोम्यारोलां से सन् 1935 में कहा था – ‘‘भारत में एक ऐसा राजनीतिक दल होना चाहिए जो किसानों और मजदूरों के हित को अपना हित समझे। मैं कहना चाहूँगा कि गॉंधी जी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर कोई निश्चित मत नहीं रखते। उनकी प्रकृति समझौतावादी है। ’’
फरवरी 1938 में जब सुभाष हरिपुर अधिवेशन में कांग्रेस के अघ्यक्ष बने तो उन्होंने इस अवसर पर स्पष्ट कहा- ‘‘जिसे तुम अहिंसा कह रहे हो, वह पहले दर्जे की कायरता है। एक उजला बन्दर घुड़काता है तो तुम कांपने लगते हो । क्या इसी तरीके से भारत आजाद होगा? इसके लिए शौर्य चाहिए, वीरता चाहिए और चाहिए खून। तुम अगर मुझे ये दे सकते हो तो मैं आजादी का वादा कर सकता हूँ । ’’
जब हिजली और चटगॉंव में नौकरशाही का नंगा नाच सर्वत्र दिखाई दे रहा था तब हिजली-कांड के विरोध में कलकत्ता में आयोजित एक विराट सभा के विराट जनसमूह के बीच सुभाष ने गर्जना की-‘‘जो साम्राज्य एक दिन में बना है, वह एक रात में नष्ट भी होगा।’’
सुभाष की इसी प्रकार की एक नहीं अनेक सभाओं में हुयी सिंह-गर्जनाओं का परिणाम यह हुआ कि वे युवाओं के मस्तिष्क पर गर्म खून की तरह छा गये। गॉंधी जी की नीतियों का शीतल स्पर्श अब उनसे कोसों दूर था। इसी युवा वर्ग ने मार्च 1939 में कंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में सुभाष को अघ्यक्ष पद के लिए खड़ा कर दिया। इस अधिवेशन में गाँधी जी द्वारा खड़ा किया गया प्रत्याशी पट्टाभि सीतारमैया लगभग दो हजार वोटों से पराजित हो गया। इस पराजय को गाँधी जी ने अपनी पराजय मानकर सुभाष के अघ्यक्ष बनने का विरोध ही नहीं किया बल्कि उन्हें हटाने के लिए कार्यसमिति के अपने बारह शिष्यों के माध्यम से त्यागपत्र देने को कहा । त्यागपत्र देने वालों में पण्डित जवाहर लाल नेहरू भी थे। दरअसल गाँधी जी चाहते थे कि सुभाष उनकी कठपुतली बनकर कार्य करें। सुभाष को यह स्थिति गवारा न थी। अतः उन्होंने अघ्यक्ष पद से इस्तीपफा देते हुये गाँधी जी पर यह टिप्पणी की-‘‘जो व्यक्ति अभी तक ‘मैं’ से नहीं उभर सका, वह भारत माता की क्या सेवा कर पायेगा।’’
सुभाष किसी के आगे नतमस्तक होने के बजाय गर्व से जीवन जीने की विचारधारा को आगे बढ़ाने वाले व्यक्तियों में से एक थे, अतः त्यागपत्र के बाद उनके मन में बार-बार यही सवाल कौंधता कि ‘उल्टी सोच और व्यक्तिगत प्रतिशोध में उलझे नेताओं के हाथों में यदि स्वराज्य प्राप्ति के बाद सत्ता आयी तो इस देश का क्या होगा ?’
ऐसे ही ज्वलंत सवालों को लेकर जब वे 22 जून 1940 को स्वातंत्रवीर सावरकर से मिले तो उन्होंने सुभाष को सलाह दी-‘‘कलकत्ता में अंग्रेजों की मूर्तियों को सार्वजनिक स्थानों से हटाने के लिये आंदोलन करने से कुछ नहीं होगा। अंग्रेज इस समय भयानक युद्ध में फॅंसे हुये हैं, छोटे-मोटे आंदोलन कर जेल में सड़ने से तो अच्छा है कि आप रासबिहारी बोस की तरह भारत से दूर जाकर कोई ऐसा ही सैन्य संगठन खड़ा कर अंग्रेजों को टक्कर दें।’’
सुभाष के मन में सावरकर की योजना घर कर गयी और वे 16 जनवरी 1941 की रात्रि 8 बजे पुलिस को चकमा देकर पठान के भेष में अपने मकान से भागने में सफल हो गये।
बर्लिन पहुँचकर जब सुभाष दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह और अंग्रेजों के कट्टर दुश्मन हिटलर से मिले तो उसने बड़े ही जोशभरे अंदाज में हाथ मिलाया। कुछ देर के वार्तालाप के उपरांत दोनों ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ब्रिटिश सरकार धोखेबाजी और विश्वासघात की नीतियों को नहीं छोड़ेगी। इसलिये आवश्यक है कि अंग्रेजों पर भारत की बाहरी सीमा से हमले किये जायें। भारत जब आजाद हो जाये तो उसकी आजादी बरकार रखी जायेगी।’’
योजनानुसार जर्मनी के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ देने वाले भारतीय सैनिकों को युद्ध बंद करने के संदेशपत्र गिराये गये। सुभाष के संदेशपत्रों का प्रभाव यह हुआ कि 45 हजार भारतीय सैनिकों ने कर्नल हसन के नेतृत्व में आत्मसमर्पण कर दिया जिन्हें लेकर सुभाष ने ‘आजाद हिंद फौज’ की स्थापना की । इस अवसर पर हिटलर ने आजाद हिंद फैाज की सलामी ली और अपने गद्गद कंठ से संबोधित करते हुये कहा-‘‘महान भारतवासी सैनिको! आप धन्य हैं और आपके नेताजी बधाई के पात्र हैं। आपके नेताजी का दर्जा मुझसे कहीं अधिक ऊॅंचा है। मैं केवल आठ करोड़ जर्मनों का लीडर हूँ , जबकि सुभाषजी 40 करोड़ भारतीयों के नेता हैं। नेताजी हर कोण से मुझसे बड़े राष्ट्रनायक हैं। मैं और मेरे जर्मन सैनिक उन्हें प्रणाम करते हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि नेताजी के नेतृत्व में भारत एक दिन अवश्य स्वतंत्र होगा |’’

————————————————————-
सम्पर्क:-15/109, ईसानगर अलीगढ़ ,

Language: Hindi
Tag: लेख
587 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

संवेदनहीन प्राणियों के लिए अपनी सफाई में कुछ कहने को होता है
संवेदनहीन प्राणियों के लिए अपनी सफाई में कुछ कहने को होता है
Shweta Soni
और इल्जाम किसी और के सर जाता है
और इल्जाम किसी और के सर जाता है
नूरफातिमा खातून नूरी
एक रुबाई...
एक रुबाई...
आर.एस. 'प्रीतम'
पेड़ लगाओ
पेड़ लगाओ
Usha Gupta
#मुक्तक-
#मुक्तक-
*प्रणय प्रभात*
कहमुकरियाँ हिन्दी महीनों पर...
कहमुकरियाँ हिन्दी महीनों पर...
डॉ.सीमा अग्रवाल
"बल और बुद्धि"
Dr. Kishan tandon kranti
पैसा ,शिक्षा और नौकरी जो देना है दो ,
पैसा ,शिक्षा और नौकरी जो देना है दो ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
तुम परेशान हो ! सुना जब से चाह रहा हूं.. दुनिया के सब ज़रूरी
तुम परेशान हो ! सुना जब से चाह रहा हूं.. दुनिया के सब ज़रूरी
पूर्वार्थ
खुद को समझ सको तो बस है।
खुद को समझ सको तो बस है।
Kumar Kalhans
श्रेय एवं प्रेय मार्ग
श्रेय एवं प्रेय मार्ग
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
हालात-ए-हाज़िरा का तज़्किरा
हालात-ए-हाज़िरा का तज़्किरा
Shyam Sundar Subramanian
🌹पत्नी🌹
🌹पत्नी🌹
Dr .Shweta sood 'Madhu'
सुख शांति मिले मुख कांति मिले,
सुख शांति मिले मुख कांति मिले,
Satish Srijan
यह कैसी विडंबना
यह कैसी विडंबना
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
हिसाबे ग़म करूँ, या ज़िक्रे बहार करूँ
हिसाबे ग़म करूँ, या ज़िक्रे बहार करूँ
Neelofar Khan
बरसात का मौसम सुहाना,
बरसात का मौसम सुहाना,
Vaishaligoel
आंखें
आंखें
Ragini Kumari
कोरोना ना, ना, ना ( RJ Anand Prajapati की आवाज मे )
कोरोना ना, ना, ना ( RJ Anand Prajapati की आवाज मे )
Rj Anand Prajapati
यही जिंदगी
यही जिंदगी
Neeraj Kumar Agarwal
*Fruits of Karma*
*Fruits of Karma*
Poonam Matia
"कर्म में कोई कोताही ना करें"
Ajit Kumar "Karn"
बदनाम
बदनाम
Deepesh Dwivedi
- तेरी तिरछी नजर -
- तेरी तिरछी नजर -
bharat gehlot
قیمتیں گھٹ رہی ہیں انساں کی
قیمتیں گھٹ رہی ہیں انساں کی
Dr fauzia Naseem shad
Success Story-2
Success Story-2
Piyush Goel
गांव के तीन भाई
गांव के तीन भाई
राकेश पाठक कठारा
पुरानी तूलिका से नए चित्र उकरने हैं
पुरानी तूलिका से नए चित्र उकरने हैं
Seema gupta,Alwar
भूल सकू तो भुला दूं
भूल सकू तो भुला दूं
Kaviraag
तुम्हारा प्रेम,
तुम्हारा प्रेम,
लक्ष्मी सिंह
Loading...