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12 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

तुलसी ज्यादा महक उठी है आँगन में,
झूम उठे हैं झूमर फिर से सावन में,
खुद को पाया मैंने फिर से दर्पण में,
नयी खनक-सी जागी है फिर कंगन में।

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