मुक्तक
तुलसी ज्यादा महक उठी है आँगन में,
झूम उठे हैं झूमर फिर से सावन में,
खुद को पाया मैंने फिर से दर्पण में,
नयी खनक-सी जागी है फिर कंगन में।
तुलसी ज्यादा महक उठी है आँगन में,
झूम उठे हैं झूमर फिर से सावन में,
खुद को पाया मैंने फिर से दर्पण में,
नयी खनक-सी जागी है फिर कंगन में।