उड़ चला हंस फिर विश्वास पा कर”: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट११९)
गीतिका
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रश्मियों ने सूर्य जब से वर लिए हैं
तामसिक संताप तप से हर लिए हैं
उड़ चला मन हंस फिर विश्वास पा कर
कल्पना ने पंख नूतन धर लिए हैं
नर्मदा के घाट जा कर भक्ति रस से
स्वर्ण मण्डित कुम्भ मैंने भर| लिए हैं
अब न टूटे कामनाओं का कलश यह
साधना से कर्म संचित कर लिए हैं ।
प्रारब्ध हो शुभकर कमल संसार को
भावनाओं से शिखर ऊँचे किये हैं ।।
—- जितेन्द्र कमल आनंद