रस लीजिए आध्यात्मिक साहित्यिक : जितेन्द्रकमल आनंद (१११)
राजयोगमहागीता::: अध्याय२१का घनाक्षरी २०
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रस लीजिए आध्यात्मिक और साहित्यिक भी,
सेवा कर सामाजिक बन विस्तार कीजिए ।
असमाजिक तत्वों की कीजिए अवहेलना ।
मिल कर सुखद यह संसार कीजिए ।
इस सकल ही पृथ्वी लोक के निवासियों से —
जुड़कर आत्मीयता से परिवार| कीजिए ।
‘ रस — सेवा — विस्तार ‘ का यह सूत्र दूसरा भी ,
मानकर दूसरों को भी उपहार दीजिए ।।
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साथ हम क्या लायेलऔर साथ क्या ले जायेंगे।
बंद मुट्ठी आये थे ,पर| खोल मुट्ठी जायेंगे ।
प्रारब्धसे जन्म लिया ,संचित न कर सके,
लायेथे जो साथ वो साथ न ले जायेंगे ।
देहतो है नश्वर ,पर आत्मा अनश्वर है ,
आयेगा जाने का समय , हम चले जायेंगे ।।
—- जितेंद्रकमलआनंद २५–१०–१६ रामपुर ( उ प्र )