एक वृद्ध मां का स्मृति लोप
उम्र के इस पड़ाव में आकर ,
जब विश्राम की स्थिति में आई मां।
जब हाथ पांव शिथिल हो गए ,
क्षीण हो गई काया ,तो विवश हो गई मां ।
आत्म निर्भर और अति बुद्धि शाली ,
सुदृढ़ ,शक्ति शाली,चतुर ,कर्मठ मां।
जो अब पुत्रों के समक्ष लाचार ,
मोहताज हो गई एक वृद्ध मां।
जिसने अपनी संतानों को कठिन समय
में मेहनत ,मजदूरी करके पढ़ाया ,
पालन पोषण किया ।
पति के बिना इस निर्दयी संसार में,
वैधव्य का लंबा जीवन गुजार कर ।
भुला दिया सारा सुख चैन ,
त्याग दिया आत्म सम्मान,
अपने पति के अधूरे कार्यों ,कर्तव्यों
उनके सपनों को पूरा करने में जी जान से जुट गई ,।
उम्र भर अपनी संतान के लिए जीने के बाद ,
अब कहती है मैने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया ,
मुझे कुछ नहीं आता ,
मैं एक दम निकम्मी हो गई हूं ।
आखिर ! क्यों वो भूल गई सबकुछ ।
कभी अतीत की यादों को कुरेदती हुई ,
तो कभी एकाकी मैं अपने पति को याद करती हुई ,
रोती है अचानक ,फिर हंस पड़ती है ।
और कभी उनसे शिकायत करती है ।
संतान समझने की कभी कोशिश करती है ,
और कभी संयम खो बैठती है ।
मगर शायद नहीं समझ पाती एक मां की मानसिक दशा ।
यह वो उम्र का पढ़ाव में,
कुछ बचपना भी है कुछ बुढ़ापा ।
यादों की धुंधली छाया कभी आती है, कभी जाती है ,
एक तो यह एकाकी पन ,और उसपर कमजोर
मन – मस्तिष्क में ढेर सारी पीड़ाएं ,दर्द ,घुटन ,
कुंठा ।
आखिर क्यों कोई बांट नहीं पाता,
समझ नहीं पाता एक निर्बल ,असहाय मां को।
उसने वैसे तो कभी भी अपना स्व गुणगान नहीं किया ,
न ही कभी कोई श्रेय लिया ।
मगर अब संतान का समय है ,
अपनी वृद्ध मां की भावनाओं को समझे ,
उसका आदर करें ,
उसकी सम्भाल करे।
क्योंकि सारी दुनिया बेशक मिल जाएगी ,
मगर मां दुबारा नहीं मिलेगी ।
इसीलिए मां को भले ही स्मृति लोप हो गया हो ,
संतान का स्मृति लोप नहीं होना चाहिए ।
के हमें आत्म निर्भर ,सुखी और संपन्न बनाने वाली,
हमें ढेरों प्यार ,दुलार और आशीर्वाद देने वाली ,
एक ही महान हस्ती है ,और वो है हमारी मां।