सूद समेत
कुछ भी नहीं भूलते हम ,
सद व्यवहार या दुर्व्यवहार ,
सब याद रखते हैं मस्तिष्क में ।
कुछ भी नहीं रखते अपने पास ,
प्यार हो या नफरत ,
सब लौटा देते हैं सूद समेत ।
जुबान तो हम भी मैली कर सकते हैं ,
अप शब्दों या श्रापों से ,
मगर कुछ कहते नहीं ,
चिल्ला तो हम भी सकते हैं ,
और शोर भी मचा सकते हैं ,
मगर ऐसा भी हम कभी करते नहीं ।
हम कुछ भी नहीं करते ,
हम कुछ भी नहीं बोलते ,
बस ! चुप चाप खामोशी से सहते हैं सब
और इंतजार कर रहे हैं ,
ईश्वर के न्याय का ।
सुना है उसके पास सबके कर्मों का ,
हिसाब लिखा होता हैं।
तो वहीं करेगा न फेसला ।
किसके साथ क्या करना है !
तो हम क्यों फिक्र करें ?
हमें उसपर पूरा भरोसा है ।
वो करेगा इंसाफ एक दिन ।
हमारे जीवन की नैया का मांझी वही है ,
और हमारी सुरक्षा ,सुख ,आनंद ,भलाई आदि
की पतवार भी उसी के हाथ है ।
वो चलाएगा ,चाहे जैसे ।
इसीलिए हम क्यों कुछ बोलें ,
क्यों कुछ करें ?
जब वह साथ है तो ।
क्या इसकी कोई जरूरत है !
बिल्कुल नहीं !
वहीं बोले ,वही करे,वही समझे ।
लोगों की कर्म सूद समेत ,
वहीं लौटाए ।