मेरे संग चल
****मेरे संग चल****
मेरे संग तू ही चल सदा
क्यों बैठा है यहां गमज़दा
नयनों में क्यों फीकापन है
देख उधर इक सुंदर चिलमन है
नयनों से अब देख सवेरा
नीड़ पर परिंदों का बसेरा
कलकल बहती सिंधु की धारा
तटिनी का वो सुदूर किनारा
मेरे हाथ की लकीर सारी
सजा दूं करावली न्यारी
स्वप्न सी सुंदर हो दुनियां
जीवन में आये अनंत खुशियां
मंद पवन ले रही हिलोरें
बैठा है क्यों मुख मोड़े
नभ हंसता दिखा दंतावली
बह रही महकती सी शामली
नियति का मधुर गीत सुनना
स्वप्निल नयन स्वप्न बुनना
अमराई पे कोयल बावरी
नव्य आस संग लाई विभावरी
विस्मृत कर उपालंभ सारे
देख आंचल में सजे सितारे
क्यों आज ये राह भरमाई
देख फिर तेरे संग चली आई
✍🏻 “कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक