जब रिश्तें बोझ बनने लगें:परिवार की बदलती परिभाषा

हाल ही में “परिवार: भारतीय समाज का आधार” विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट की जज एवं पारिवारिक न्यायालय समिति की अध्यक्षा जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि भारत में आज पारिवारिक संस्था में तीव्र गति से बदलाव हो रहा है। ये परिवर्तन न केवल परिवारों की संरचना को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि हमारी कानूनी व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल रहे हैं।
जस्टिस नागरत्ना ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि प्रत्येक सभ्यता में परिवार को समाज की मूलभूत इकाई के रूप में स्वीकार किया गया है। यह संस्था हमारे अतीत से जुड़ने का माध्यम है और हमारे भविष्य की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण सेतु भी है। इसलिए, पारिवारिक विवादों में दोनों पक्षों को एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने और स्वीकार करने का प्रयास करना चाहिए। उन्हें टकराव के बजाय संवाद और सामंजस्य की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
हमारे समाज में यह कहावत प्रचलित है – “मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी”, वहीं यह भी कहा जाता है – “मियां-बीवी का झगड़ा, जो बोले सो लबड़ा”। परंतु वर्तमान समय में यह झगड़ा केवल घर-परिवार तक सीमित न रहकर थाने और अदालतों तक पहुँचने लगा है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पति-पत्नी के बीच सामंजस्य की भारी कमी देखने को मिल रही है। कई मामलों में दोनों एक-दूसरे के प्रति अत्यंत क्रूरता का प्रदर्शन कर रहे हैं। सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में प्रतिदिन ऐसे अनेक मामलों की खबरें देखने को मिलती हैं। इन झगड़ों से तंग आकर युवा आत्मघाती कदम उठाने तक को मजबूर हो रहे हैं।
हाल ही में जब मैं एक पारिवारिक विवाद के सिलसिले में जिला न्यायालय गया था, तो एक वकील ने वहां उपस्थित भीड़ की ओर इशारा करते हुए कहा – “सर, देखिए इस भीड़ में अधिकांश लोग दारू, बालू और मेहरारू के मामले में उलझे हुए हैं।” वकील का यह कथन भले ही अतिरंजित लगे, लेकिन यह अवश्य सत्य है कि आज न्यायालयों में पारिवारिक मामलों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है, जिससे अनेक लोग लंबे समय से प्रभावित हो रहे हैं।
यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षा और रोजगार के कारण महिलाओं को सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई है, और यह एक सकारात्मक परिवर्तन है। जब देश की आधी आबादी आगे बढ़ेगी, तभी राष्ट्र समग्र रूप से प्रगति करेगा। किंतु स्वतंत्रता और उच्छृंखलता के बीच की सीमा को समझना भी अत्यंत आवश्यक है।
पति-पत्नी के बीच थोड़ी सी भी गलतफहमी कई रिश्तों में कड़वाहट ला सकती है। इससे न केवल समय और धन की बर्बादी होती है, बल्कि मानसिक संतुलन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई बार दोनों पक्षों के परिवारजन भी स्थिति को और अधिक जटिल बना देते हैं, जिससे विवाद का समाधान और कठिन हो जाता है।
शिक्षा तक बढ़ती पहुँच,तीव्र शहरीकरण,व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं में वृद्धि, महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्वतंत्रता,विवाह के बाद लड़की के मायके वालों की अत्यधिक दखलअंदाजी,एंड्रॉयड मोबाइल और सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग,संयुक्त परिवार से एकल परिवार की ओर बढ़ता झुकाव आदि वर्तमान समय में पारिवारिक विवादों का मुख्य कारण बनते जा रहे हैं।
इन जटिलताओं के समाधान हेतु सबसे प्रभावी उपाय यही हो सकता है कि पति-पत्नी एवं उनके परिवारजन आपसी संवाद के माध्यम से दो कदम आगे बढ़ाएं। केवल न्यायिक समाधान पर्याप्त नहीं हैं। जब तक कि दोनों पक्ष समस्या के मूल कारण को समझने और समाधान की दिशा में प्रयास करने को तैयार न होंगे तबतक इन पारिवारिक मामलों की संख्या दिन ब दिन बढती जायेगी।
स्व रचित मौलिक