आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भगवान राम। ~ रविकेश झा

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी मित्र अच्छे और स्वस्थ होंगे और निरंतर ध्यान में उतर रहे होंगे। ध्यान ही हमें शांति और संतुष्टि के ओर ले जाने में मदद करता है। अगर हम ध्यान के साथ कनेक्ट रहकर जीने का प्रयास करें फिर हम पहले जैसा नहीं रहेंगे न ही हम क्रोध घृणा में रुचि लेंगे न वासना में हम निष्काम में रूपांतरण हो जायेंगे और हमारे पास एक स्पष्टता आएगी जिसके मदद से हम जीवन में सार्थक सृजन कर सकते हैं और निरंतर ध्यान के अभ्यास से पूर्ण मुक्ति के ओर भी बढ़ सकते हैं। हम मानने के आदि के श्रेणी में आते हैं हम जानने में उत्सुक नहीं होते मानना उधार है जानना अनुभव का काम है और स्थिर होना ध्यान का। जो जानेगा वह मानेगा क्यों और मानेगा कौन और किसको भिन्न कौन है यहां कौन विश्वास करेगा, जो विश्वास करेगा वह फिर अविश्वास भी करने लगेगा अपने कामना के हिसाब से तुरंत दुखी तुरंत खुशी हम वस्तु पर निर्भर है इसीलिए हम कुछ देखते हैं प्रकाश के साथ फिर हम अधिकार मानने लगते हैं जो देखते हैं अपने पास उसे अपना और मानने भी लगते हैं। जो जानता है वह मानेगा क्यों और किसको कोई अलग से बैठा है क्या? आप कल्पना में जी रहे हैं आप कल्पना करते हैं आप अपने हिसाब से भगवान को मानते हैं वस्त्र अपने हिसाब से सब कुछ भाव के साथ कल्पना करके मन में स्थापित किए हुए हैं। लेकिन वास्तव में सत्य कुछ और ही है सत्य शून्य है अदृश्य है दृष्टा है वह हर जगह मौजूद है भौतिकता पर निर्भर नहीं है सूक्ष्म ब्रह्म है प्रभु, लेकिन उसके लिए जागरूकता का चश्मा लगाना होगा आंख खोलना होगा। सभी कुछ न कुछ मानते हैं चाहे वह झूठ हो या सत्य लेकिन मानना है। तीन अवस्था है मनुष्य के जीवन में एक होता है मानना एक होता है जानना और तीसरा है मात्र होना लेकिन हम सब पहले श्रेणी में आते हैं कुछ लोग कुछ पुस्तक पढ़ लिए है मास्टर हो गए हैं पीएचडी किए हैं वह कुछ चीज जानते हैं जो जानते हैं वह मानेंगे नहीं बल्कि वह प्रोसेस जान लिए हैं वर्णमाला क्रमानुसार जान लिए हैं अब वह शब्द बनाएंगे वह जान लिए हैं कैसे होता है अब वह मानेंगे नहीं। जैसे एक गुलाब का फूल है सुंदर है वैज्ञानिक को बोलो कहेगा कोई सुंदर नहीं है सुंदर का मुझे कारण पता है ये इस पदार्थ या ये ऊर्जा के कारण है वह तोड़ के देखेगा फिर वह सुंदरता को खो देगा क्योंकि वह बुद्धि में है वह जानता है। और तीसरा है होना अब वह जानने वाले को जान लिया जो खोज कर रहा था उसको पकड़ लिया देख लिया और पता चला सब मन का हिस्सा है एक मानता है एक जानता है प्रकाश के साथ है तीसरा आकाश के तरह बस है सब में व्याप्त है सब जगह शून्यता है पदार्थ से ऊर्जा ऊर्जा से चैतन्य अब सफर पूरा हुआ अब बिलीव करने वाले को भी देख लिया और बुद्धि यानी जानने वाले को भी देख लिया अब एक हो गया अब जो हो से हो सब में राज़ी हो गया। अब दुख हो या सुख हो सब अपना है सब शरीर का है और आनंद आत्मा का है आनंद परमात्मा देते हैं खुशी हम खोजते हैं इसीलिए मिनट मिनट पर राय बदलते रहते हैं मन अंदर से चलता राहत है और हम शरीर में क्रिया नही करते मगर मन में चलता रहता है, बोलोगे कैसे की मुझे वह भी पसंद आ रहा है टूट जाएगा रिश्ता। इसीलिए मन में सोचते रहते हो मन में कौन देखेगा और जब सूचनाएं इकट्ठा करते हो फिर वासना भी धीरे धीरे दौड़ लगाने लगता है क्योंकि आप मन में कचरा भर रहे हैं वह कहां जायेगा वह कहीं कहीं न से निकलने का प्रयास करेगा ऊर्जा इकट्ठा होगा वासना दौड़ लगेगा आप फिर विक्षिप्त या पागल या क्रोधी हो सकते हैं। आप नशा का सहारा ले सकते हैं आप बीमार और परेशान हो सकते हैं। इसीलिए ध्यान के साथ कनेक्ट रहकर ही जीवन जीने का प्लान बनाए। नहीं तो बस दुख क्रोध मोह लोभ ईर्ष्या स्पर्धा वासना तंग करेगा इसीलिए होश से काम को घटने दें। भागना नहीं है कहीं बस जागना है। आज बात कर रहे हैं भगवान राम के बारे में राम की बात हर कोई करते हैं लेकिन अपने मतलब के लिए अपने इच्छा के लिए। आज कल जहां देखो सब भौतिक में उलझ कर आपस में भाई चारा को समाप्त करना चाहते हैं। कुछ व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कुछ सोशल मीडिया पर बस पोस्टर लगाना है लाइक से मतलब है राम जी से कोई मतलब नहीं। सब एक दूसरे के धर्म को गाली देते हैं अश्लील फोटो बस मां को गाली बस अपना मुंह खराब होता है ऐसे में। दूसरा व्यक्ति चाहे तो स्वीकार करने से बच सकता है। लेकिन हम सब क्रोध वासना में उलझ जाते हैं। राम जी से किसी को मतलब नहीं बस राम के नाम पर अपनी वासना को पूरा करना है। राजनीति करना है राम को राजनीति से क्या अर्थ लेकिन हम सब बस दसरथ जी के पुत्र से परिचित हैं पूर्ण राम से नहीं राम कोई भौतिक व्यक्ति नहीं सूक्ष्म है ब्रह्म है शून्य है, राम पहले भी हुए थे जैसे परशुराम राम तो पहले भी हुए हैं राम का अर्थ है मृत्यु मृत्यु से परे लेकिन हम सब बस भौतिक से परिचित हैं न की इस राम से राम जी का कोई अनुभव नहीं बस पुस्तक से कुछ शब्द उठा लिए हैं और तोता के तरह दोहरा रहे हैं ऐसे में बस आप स्वयं को मूर्ख बना रहे हैं, आप के सामने जो परोस दिया जाता है आप उसे आंख बंद करके ग्रहण कर लेते हैं प्रश्न उठता भी नहीं और हम उठाना भी नहीं चाहते हैं। ध्यान के साथ सभी भागों को पार्टिकुलरी देखना होगा एक एक भाग को मैं राम पर अधिक बोलूंगा तो विवाद हो जायेगा इसीलिए आप लोग स्वयं ध्यान के साथ अध्यन करें रामायण के सभी पुस्तक को और स्वयं को भी तभी सार्थक बातें सामने आएगी। अभी मैं कुछ बोल दूंगा आप सबूत मांगोगे जो अतीत से देख कर बता रहा है वह तुम्हें सबूत कहां से देगा मुस्किल है लेकिन असंभव नहीं आप स्वयं के आंख से सब कुछ देख सकते हैं स्मृतियां कभी नहीं मिटती जो बीता वर्षो से वह आप देख भी देख सकते हैं जो हुआ है वह का कभी भी कहीं भी देखा और सुना जा सकता है संभावना बहुत है आपके पास बस विकसित करना है।
भारतीय आध्यात्मिकता के विशाल क्षेत्र में, भगवान राम जितने पूजनीय और प्रभावशाली व्यक्ति बहुत कम हैं। भगवान विष्णु के अवतार के रूप में, वे सद्गुण, धार्मिकता और ज्ञान के आदर्श के रूप में खड़े हैं। महाकाव्य रामायण में वर्णित उनका जीवन और कार्य दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में काम करते हैं बस कुछ नेता को छोड़कर क्योंकि वो राम जी के साथ भी राजनीति करते हैं, धर्म को मोहरा मानते हैं। राम के जीवन के केंद्र में धर्म या धार्मिकता की अवधारणा है। अपार व्यक्तिगत बलिदान के बावजूद भी कर्तव्य के प्रति उनका अटूट प्रतिबद्धता, नैतिक और नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप जीवन जीने में महत्व को रेखांकित करती है। धर्म के प्रति दृढ़ पालन आध्यात्मिक विकास और पूर्णता चाहने वाले व्यक्तियों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। अयोध्या से लंका तक भगवान राम की यात्रा केवल एक भौगोलिक यात्रा नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है जो दृढ़ता, न्याय और नैतिक अखंडता का मूल्य सिखाती है। अपने कार्यों के माध्यम से, वे उदाहरण देते हैं कि जीवन की प्रतिकूलताओं के बीच कोई व्यक्ति अपने सिद्धांतों के प्रति कैसे सच्चा रह सकता है। एक शासक और योद्धा के रूप में अपनी भूमिका से परे, भगवान राम को उनकी करुणा और विनम्रता के लिए जाना जाता है। जीवन के सभी क्षेत्रों के व्यक्तियों के साथ उनकी बातचीत नेतृत्व और आध्यात्मिकता के प्रति उनके समावेशी दृष्टिकोण को उजगार करती है। सीता जी के साथ जो उनका प्रेम करुणा था वह शब्दों में कहना मुश्किल है, जो उन्होंने वन से लंका तक का जो रास्ता तय किए वह आसान नहीं था, लेकिन वह फिर भी पीछे नहीं हुए बल्कि सीता जी के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थे। लेकिन हम भी आज उन्हें ही प्रेम करते हैं जो हमें अंत तक प्रेम करुणा और सहयोग करे। चाहे हनुमान जी के साथ उनकी मित्रता हो या वन में ऋषियों के प्रति उनका सम्मान, भगवान राम का जीवन सहानभूति और दया की शक्ति है। चाहे लक्ष्मण भरत अन्य भाई के लिए जो प्रेम था वह पूज्यनीय है, विशेष भरत जी के उनका प्रेम और विश्वास देखने को मिलता है। माता पिता से प्रेम निस्वार्थ भाव से सेवा करना ये आप उनमें देख सकते हैं। यह विनम्रता और उनके वनवास को स्वीकार करने में और अधिक परिलीक्षित होती है, जिसे उन्होंने शालीनता और गरिमा के साथ अपनाया। क्रोध या कटुता के आगे झुकने के बजाय, उन्होंने इस अवधि का उपयोग चिंतन और आध्यात्मिक विकास के रूप में किया। आध्यात्मिक साहित्य में, राम का धनुष शक्ति, लचीलापन और बुराई पर विजय पाने की शक्ति का प्रतीक है, रावण पर उनकी जीत केवल भौतिक विजय नहीं है, बल्कि अहंकार और अज्ञानता पर आध्यात्मिक विजय है। यह जीत आंतरिक लड़ाई नकारात्मक ऊर्जा पर काबू पाने और आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के रूपक के रूप में कार्य करती है। धनुष शक्ति और करुणा के बीच संतुलन का भी प्रतिनिधित्व करता है। भगवान राम की अपने हथियार को सटीकता और उद्देश्य के साथ चलाने की क्षमता धर्म की सेवा में नियंत्रित शक्ति के महत्व के रेखांकित करती है। राम की विरासत समय से परे है और बहुत आध्यात्मिक साधकों को प्रेरित करता है। उनका जीवन नेतृत्व, भक्ति और निस्वार्थ पर गहन सबक प्रदान करता है। आध्यात्मिक पथ पर चलने वालों के लिए, उनकी कहानी एक अनुस्मारक है, सच्ची पूर्णता दूसरों की प्रेम और ईमानदारी से सेवा करने में निहित है। समकालीन समय में, भगवान राम की शिक्षाएं हमेशा की तरह प्रासंगिक हैं। वे हमें व्यक्तिगत और आध्यात्मिक उत्कृष्टता के लिए प्रयास करते हुए धैर्य साहस और विनम्रता जैसे गुणों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। आखिरकार राम के आध्यात्मिक दृष्टिकोण को अपनाना हमें उनके द्वारा बताए गए शाश्वत सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होकर आत्मज्ञान की ओर अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं। रावण को भी देखना होगा दृष्टि दोनों पर रखना होगा, कुछ बातें शास्त्र के पन्नों में नहीं होते, अच्छी बात हम रख लेते हैं और कुछ छोड़ देते हैं, रावण विद्वान था, पंडित ब्राह्मण, शक्तिशाली, लेकिन बल अहंकार को अपना मित्र मानता था वासना भी था, बुद्धिमान और पूर्ण ज्ञान भी था उसके पास, लेकिन जिसका लाठी उसकी भैंस, रावण के पास सब कुछ था, चाहे करुणा के दम पर चाहे कामना बेईमानी से, जो दिख रहा है वो प्राप्त करना चाहेगा। सभी बात को देखना होगा, विविषण को भी देखना होगा, इंद्रजीत को भी, कुंभकरण को भी, रावण की बात करेंगे अगले लेख में।
ध्यान में उतरते रहे साहब।
धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️