हास्य ग़ज़ल- आया है जबसे कमा कर शहर से
हास्य ग़ज़ल- आया है जबसे कमा कर शहर से
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वो माँ से नहीं बात करता मदर से
कि आया है जबसे कमा कर शहर से
बहन को कहें सिस, ब्रो भाई को कहता
वो बिगड़ी जुबां ले के आया किधर से
जो मामा औ फूफा को अंकल बुलाता
यही सीखने क्या वो निकला था घर से
नहीं पड़ रहे पाँव उसके जमीं पर
कि आया है जबसे वो मायानगर से
लगाता नहीं, इत्र से है नहाता
बिखर जाए खुशबू वो गुजरे जिधर से
वो दिन भर रहे पान-गुटखा चबाता
छुपे साँढ़ उसकी जुगाली के डर से
बड़ी देर से पी के बेसुध पड़ा है
निकालो उसे कोई जा के गटर से
जो उलझी लटों में ही उलझा हुआ है
वो निकलेगा कैसे बताओ भँवर से
वो फूहड़ से गाने बजाने लगा है
गुजरने लगा अब तो पानी भी सर से
सबक दे के ‘आकाश’ उसको सुधारो
बिगड़ने लगे लड़के उसके असर से
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 01/04/2025