*मेरी मां*

गिनती नहीं आती मेरे मां को यारो,
गिन गिन कर रोटियां खिलाती है मेरी मां,
मोटा हूं फिर भी उसको लगता हूं मै दुबला,
अपने हिस्से की रोटियां भी खिलाती है मेरी मां,
फटी हो खुद की साड़ी का पल्लू भी यदि यारों,
उसी पल्लू की गांठ से,
जींस का पैसा निकाल देती है मेरी मां,
आंखों से मेरे आंसू की एक बूंद जो गिरे,
सिर पर सारा जहां उठा लेती है मेरी मां,
सपनो को मेरे, अपने उधड़े सपनो से है बुनती,
हर दर्द को अपने दिल में समेटती है मेरी मां।
जीवन को मेरे, अपने जीवन से सींचती,
हर बोझ को हंसकर उठाती है मेरी मां,
दर्द चाहे जितना भी, मां से छुपाऊं मैं यारों,
बिना शब्दों के हर दर्द को समझती है मेरी मां।
दुनियां के नजरों से कहीं, नजर न लग जाए,
इसलिए अक्सर नज़रे उतारती है मेरी मां।।
सर्दी में ठिठुरती रहे खुद सारी रात,
पर मेरी रजाई को कसवाती है मेरी मां,
खुद चाहे भूखी ही रह जाए पूरा दिन,
पर मुझे भरपेट खिलाती है मेरी मां।
मेरी जीत पर खुद से ज्यादा इतराए,
मेरी हार पर खुद से ज्यादा पछताती है मां।
मैं कितना ही बड़ा क्यों न हो जाऊं,
फिर भी बच्चे सा गले लगाती है मां।
हर कदम पर मेरा हौसला बढ़ाती,
मुश्किलों में भी हंसना सिखाती है मेरी मां,
मेरे जरूरतों को पूरा करने के लिए,
खुद को निचोड़ देती है मेरी मां ।।