कुंडलिया

कुंडलिया
बड़बोलापन का हुए, नेता कई शिकार।
तनखैया उनको कहे, जो थे सच सरकार।।
जो थे सच सरकार, बाल की खाल निकाली।
भवन किए नीलाम, कमाई सारी काली।।
कह बाबा मुस्काय, त्याग मत यह भोलापन।
कर देता बर्बाद, बात का बड़बोलापन।।
©®दुष्यंत ‘बाबा’