“ज़िंदगी सी किताब”

कुछ में उल्लास अति सुंदर
कुछ में दर्द के गीत लिखे
हैं शामिल किताब सी जिंदगी में
कुछ लम्हात बिना किसी जज़्बात लिखे हुए,
बचपन की कुछ यादों की अमिट छाप
करती हलचल पन्नों की नरमी में
फलांग बचपन आई जवानी
तब लिखी चटपटी कहानी कुछ पन्नों में,
किसी में भाव का सैलाब भरा
तो कोई निपट खाली भाव विहीन भरा
कभी दौड़ लगाता चंचल मन
कभी निडाल और यह खालीपन,
किसी ने पढ़ लिया तरीके से
कोई उलट पलट कर छोड़ गया
जिसे जितना पढ़ा मुझे
वैसा ही उसने समझ लिया,
कोई हृदय से लगा कर चला गया
कोई उम्र भर साथ खड़ा रहा
जो उतर गया मन की गहराई तक
वो बिना पढ़े ही समझ गया,
जो सुना सकी ना लिख सकी
वो आँखों की गहराई से समझ गया
मेरी जिंदगी सी किताब में
बहुत कुछ अन-पढ़ा भी रह गया।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”