शीर्षक – किताब….. जिंदगी

शीर्षक – किताब….. जिंदगी
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शब्दों और हकीकत में अंतर है
किताब एक बार पढ़ कर रखते हैं
धूल जमें,बस काम पर खोली जाती है
जीवन जिंदगी की किताब ऐसी है।
इंसान समय हालात की किताब है।
हम सबके साथ ही पन्ने रहते हैं।
एक-दूसरे के लिए पन्ना अलग होता हैं।
सच पन्ने फरेब और स्वार्थ स्वाद होते हैं।
किताब और हम शब्दों के साथ रहते हैं।
हां नीरज पन्ने जो भी शब्द लिखते हैं।
किताब लाजवाब जिंदगी की कहते हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र