घर·घर में अब विभिषण सारे लोग हो गए

घर·घर में अब विभिषण सारे लोग हो गए
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मर्यादा पुरुषोत्तम राम जग से लोप हो गए,
घर·घर में अब विभीषण सारे लोग हो गए।
राजा दशरथ जैसे पिता जग में रहे नहीं,
राम·लक्ष्मण जैसे पुत्ररत्न अब लोप हो रहे।
हर घर में कैकेयी·मंथरा जैसे चरित्र हैं यहाँ,
अब पत्नी वचन पति के लिए ठोस हो गए।
चार वेदों का ज्ञानी रावण था स्त्री सत्कारी,
कलयुगी रावण नारी के लिए मौत हो गए।
भरत·शत्रुघन जैसे आज्ञाकारी भाई हैं नहीं,
भाई·भाई भाईचारे के संबंध लोप हो रहे।
सीता सी कोई सतीत्व,आर्यता है ही नहीं,
पति-पत्नी के संबंध आपसी विरोध हो रहे।
शांति और संस्कार हेतु रामायण विसारिए,
मनसीरत पवित्र चरित्र जग से लोप हो रहे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)