#बेचारा_नीला_ड्रम-

#लघुकविता-
■ व्यर्थ हुआ बदनाम।।
[प्रणय प्रभात]
“सोच रहा था अन्न धरूँगा,
या जल का भंडार करूँगा।
जब स्थिति होगी अभाव की,
भूख हरूँगा प्यास हरूँगा।।
दशकों तक सेवा करने का,
एक बार फिर टूट गया भ्रम।
घर के भीतर, इक कोने में,
फिर लज्जित सा है नीला ड्रम।।”
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-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)