सांसदों का वेतन, भत्ते और सुविधाएँ

सांसदों का वेतन, भत्ते और सुविधाएँ
लोकतंत्र में जनता द्वारा निर्वाचित सांसदों को वेतन और विभिन्न भत्ते इस उद्देश्य से प्रदान किए जाते हैं कि वे निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा कर सकें। यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई थी ताकि सांसद आर्थिक रूप से निर्भर न रहें और वे पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। हालांकि, समय के साथ यह प्रणाली कई सवालों के घेरे में आ गई है, खासकर तब जब आम कर्मचारियों की तुलना में सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं में असमानता देखी जाती है।
सांसदों के वेतन और भत्तों की स्वीकृति में भेदभाव: सांसदों के वेतन और भत्ते बढ़ाने का निर्णय बिना किसी विरोध या अड़चन के सहजता से लागू हो जाता है। यह प्रक्रिया बेहद आसान होती है क्योंकि इसका निर्णय खुद सांसदों द्वारा ही लिया जाता है। संसद में एक प्रस्ताव लाकर इसे पारित कर दिया जाता है और फिर यह नियम बन जाता है। इसके विपरीत जब आम सरकारी कर्मचारियों के वेतन, भत्तों या अन्य सुविधाओं की बात आती है तो उन्हें लंबी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। कई बार उन्हें अपनी मांगों को मनवाने के लिए हड़तालें, धरना-प्रदर्शन और संघर्ष करना पड़ता है।
पेंशन व्यवस्था में भेदभाव
सरकार ने आम सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (OPS) को समाप्त कर दिया, जिसे पहले एक स्थायी आर्थिक सुरक्षा के रूप में देखा जाता था। इसके स्थान पर नई पेंशन योजना (NPS) लागू कर दी गई, जो बाजार आधारित है और जिसमें मिलने वाली राशि निश्चित नहीं होती। इस बदलाव के कारण लाखों सरकारी कर्मचारियों को अपने भविष्य की आर्थिक सुरक्षा को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। इसके विपरीत, सांसदों को जीवन भर पेंशन की सुविधा दी जाती है, भले ही उन्होंने केवल एक दिन के लिए भी संसद सदस्य के रूप में कार्य किया हो। यह विरोधाभास सरकार की नीति पर सवाल उठाता है कि आखिर क्यों एक ओर सरकारी कर्मचारियों की पेंशन खत्म की जाती है, और दूसरी ओर सांसदों को विशेषाधिकार के रूप में यह सुविधा आजीवन दी जाती है।
सांसदों को मिलने वाले वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएँ
• मासिक वेतन: ₹1,00,000 प्रति माह।
• निर्वाचन क्षेत्र भत्ता: ₹70,000 प्रति माह।
• कार्यालय व्यय भत्ता: ₹60,000 प्रति माह, जिसमें ₹20,000 स्टेशनरी और ₹40,000 सहायकों के वेतन के लिए होता है।
• संसदीय भत्ता: ₹87,000 प्रति माह।
• दैनिक भत्ता: ₹2,500 प्रति दिन (संसद सत्र के दौरान)।
• रेल यात्रा: प्रथम श्रेणी एसी में मुफ्त यात्रा की सुविधा।
• हवाई यात्रा: प्रति वर्ष 34 हवाई यात्राएँ (आवागमन सहित), जिसका खर्च सरकार वहन करती है।
• यदि सड़क मार्ग से यात्रा की जाए, तो ₹16 प्रति किलोमीटर की दर से भत्ता मिलता है।
• आवास: दिल्ली में मुफ्त सुसज्जित सरकारी आवास।
• टेलीफोन और इंटरनेट: ₹1,50,000 मुफ्त टेलीफोन कॉल्स प्रति वर्ष।
• चिकित्सा सुविधा: सांसदों और उनके परिवारों को सरकारी व चयनित निजी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा सुविधा।
• मासिक पेंशन: ₹25,000 प्रति माह।
• अतिरिक्त पेंशन: प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष के लिए ₹2,000 प्रति माह की वृद्धि।
• पूर्व सांसदों के लिए पेंशन जारी, जबकि सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना समाप्त।
जन सेवक या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग?
सांसदों को “जन सेवक” कहा जाता है, लेकिन उनकी वेतन-भत्तों और सुविधाओं को देखते हुए यह प्रश्न उठता है कि क्या वे वास्तव में जनता की सेवा कर रहे हैं या राजसी जीवन जी रहे हैं? आम जनता महंगाई से जूझ रही होती है और सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ते में मामूली बढ़ोतरी के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जबकि सांसदों का वेतन और सुविधाएँ बिना किसी विरोध के बढ़ा दी जाती हैं।
वेतन निर्धारण की पारदर्शिता आवश्यक: वर्तमान में सांसद अपने वेतन और भत्ते स्वयं तय करते हैं, जो एक स्पष्ट हितों का टकराव (conflict of interest) है। यह प्रक्रिया लोकतंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती है। इसलिए सांसदों के वेतन में वृद्धि का निर्णय एक स्वतंत्र आयोग द्वारा किया जाना चाहिए, न कि स्वयं सांसदों द्वारा।
निष्कर्ष: सांसदों को निश्चित रूप से वेतन और सुविधाएँ मिलनी चाहिए, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह सुविधाएँ तर्कसंगत और न्यायसंगत हों। जिस प्रकार आम सरकारी कर्मचारियों की पेंशन योजना समाप्त कर दी गई, उसी तरह सांसदों की पेंशन प्रणाली की भी समीक्षा आवश्यक है। इस असमानता को दूर करने के लिए एक निष्पक्ष वेतन आयोग का गठन किया जाना चाहिए, ताकि सांसदों के वेतन और भत्तों का निर्धारण जनहित में हो, न कि केवल जनप्रतिनिधियों के हित में।