युद्ध
युद्ध का तांडव जब शुरू हुआ
धरती का सीना कांप उठा
खून सना हर मिट्टी में
माँ का ह्रदय चीत्कार उठा।
बम गोलों की बोछारों में
जन मानस कितना हलाल हुआ
झूठी सीमाओं के घेरे में
रंग धरती का भी लाल हुआ।
माँओं ने लाल खपा दिए
संतानें बिन माँ-बाप हुई
सुहागन का सिन्दूर मिटा
जिन्दगी की मौत से हार हुई।
ये गर्व हमें किस जीत का है
लाशों के ढ़ेर लगा दिए
अपना मरा या दुश्मन मरा
इन्सानियत को हम हरा दिए।
कौन है इसका जिम्मेदार
किसने ये युद्ध कराया है
लड़ने वाले भी भूल गए
क्या मकसद हमनें पाया है।
दिल पर रखकर पत्थर हमनें
माँ की ममता को रुलाया है
सर काट दिए बिन सोचे ही
कितनों को अनाथ बनाया है।
@ विक्रम सिंह