दोहा पंचक. . . . . सुख- दुख
दोहा पंचक. . . . . सुख- दुख
होने को संसार में, सुख हैं अपरम्पार ।
रेला दुख का पर करे, हर सुख का संहार ।।
करता है मधुमास को , पतझड़ सदा उदास ।
जीवन के इस चक्र में, मिटे न सुख की आस ।।
सुख कितना संसार में, जान सका है कौन ।
पीड़ा के इस पंक के , प्रश्न सभी हैं मौन ।
बाहर तो आभास है, सुख अंतस का भाव ।
दुख के बीहड़ में यही ,हरे हृदय के घाव ।।
लगते हैं संसार में, सुखी सभी प्रासाद ।
इनकी नींवों में मगर , दुख की भरी मवाद ।।
सुशील सरना / 24-3-25