गीत
गीत
तकदीरें हाथों से लिखना ,
हमको भी है आता ।
कर्म बदलते रेख भाग्य की ,
श्रम से अपना नाता ।।
नित बोया हम रोज काटते ,
ऐसे करें गुजारा ।
कल की चिंता हमें नहीं है ,
आज लगे है न्यारा ।
झूंठे सपने नहीं पालते ,
मन कब है अकुलाता ।।
कर्म बदलते रेख भाग्य की ,
श्रम से अपना नाता ।।
बहा पसीना भुजबल से ही ,
धन हम रोज कमाते ।
जरूरतें पूरी कर अपनी ,
नींदें नहीं गँवाते ।
हँसी अधर पर बनी रहे बस ,
मान कहाँ मिल पाता ।।
कर्म बदलते रेख भाग्य की ,
श्रम से अपना नाता ।।
युग बदला है हम बदले हैं
श्रम मिलता है थोड़ा ।
आज मशीनी युग ऐसा है ,
जिसने रुख है मोड़ा ।
कदम कदम संघर्ष बड़ा है ,
समय हमें दौड़ाता ।।
कर्म बदलते रेख भाग्य की ,
श्रम से अपना नाता ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )