– गहरी खामोशी है मेरी –
– गहरी खामोशी है मेरी –
तुझे चाहा जरूर पर पा न सके,
दिल धड़का जरूर पर जता न सके,
प्यार करते थे तुझसे पर दिल की बात दिल में ही रह गई,
तुम्हे इजहार करना था पर इजहार कर न सके,
कुछ मजबूरिया थी मेरी पारिवारिक,
कुछ तुम्हारे था पारिवारिक दबाव,
हमने तुम्हे खो दिया अपनो का विरोध न कर सके,
हमारी खामोशी अब हमें बहुत रुलाती है तन्हा रातों में,
गहरी खामोशी हमारी हम क्यों थे खामोश किसी को बता न सके ,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान