ना ही इच्छा कुछ शेष रही

ना ही इच्छा कुछ शेष रही
ना ही है कोई अभिलाषा
मन में बस रुदन ही है केवल
इस जगत से नाता पूर्ण हुआ
ज्यादा अब चल ना पाऊंगा
कोशिश की सब को खुश रखूं
जिसको देखो नाराज मिले
अब और भरम में जी ने सकूं
ना ही इच्छा कुछ शेष रही
ना ही है कोई अभिलाषा
मन में बस रुदन ही है केवल
इस जगत से नाता पूर्ण हुआ
ज्यादा अब चल ना पाऊंगा
कोशिश की सब को खुश रखूं
जिसको देखो नाराज मिले
अब और भरम में जी ने सकूं