संविद गुरुकुलम :- एक नयी शुरुआत

संविद गुरुकुलम
एक नाम है एक पैगाम है ,
एक तजुर्बा है एक मुकाम है,
बालिकाओं की शिक्षा का_
और वो भी संस्कारित,
सैनिक स्कूली शिक्षा..
यही व्यवस्था यदि ,
सन सैंतालीस से की जाती तो _
आज देश में हजारों,
दुर्गा ,काली, सावित्री, पद्मिनी की फौज दिखती,
भारत को नारी शक्ति का सही एहसास कराती,
राक्षसों का रक्तबीज जमीन पर गिरने नहीं देती,
पर अभी वर्तमान है कैसा _
नंगापन और वहशीपन का दौर चल रहा है..
झूठे प्रेमजाल में फंसती अबलाए,
मेट्रो और प्लेटफार्म पर रील बनाती युवतियां,
जे एन यू मे डफली बजाकर,
तिलक तराजू गाती अर्बन नक्सल बालाएं..
ये सब सोची समझी साजिश नहीं थी,
तो और क्या थी…?
तभी तो आजादी के बाद,
समान शिक्षा प्रणाली लागू नहीं की गई..
एक तरफ कट्टरता बढाकर,
पापियों की फौज तैयार करनी थी..
तो दूसरी तरफ सर कटवाने के लिए,
नरमुंडो की जीवित लाशें तैयार करनी थी..
यही तो था राजनीति का ककहरा _
भोंदुओ को समझ आयेगी कैसे,
घर बैठे मुफ्त का भोजन चाहिए था बस..
जब आजादी के बाद डेढ़ दशक तक,
एक धर्मविरोधी विदेशी इंसान को ,
शिक्षा का महकमा देकर नवाजा गया ,
तो सभी कुंभकर्णी निद्रा में मग्न थे..
उन्होंने बड़ी दूर दृष्टि का पौध लगाया था,
जिसमें पत्थर के फल फलीभूत हो रहें हैं..
बस भारत को एक धक्का और देना था_
और फिर भारत का भी ,
कांधार की तरह कोई बदला हुआ नाम होता ..
लेकिन साध्वी जी ने ,
धक्का कहीं और दिलवा दिया ..
धन्य हो परमपूज्या साध्वी ऋतुम्भराजी का,
यह देश कभी भी,
उनका ऋण नहीं चुका सकता..
सोये हुए को जगाने का,
भारत के आत्मसम्मान वापस दिलाने का,
पुराने वक्तों को याद कीजिए,
छिपती छिपाती, भारत को जगाती ,
कंलक के धब्बों को मिटाने की छटपटाहट,
क्या कुछ नहीं झेला है उन्होंने,
धर्म स्थापना हेतु..
सत्य बोलना भी अपराध से कम नहीं ,
जेल में डाला गया, शहर घुसने से मनाही,
पूरी छावनी में तब्दील हो जाता ,
जहां-जहां जाती थी वह..
कईयों मुकदमे हुए उनपर ,
जेल भी गई, लेकिन कर्तव्य पथ अडिग,
कितनी तन्मयता से ,
कथा प्रस्तुत करती रही,
लोगों को सुसंस्कृत करती रही..
वृंदावन का वात्सल्य ग्राम,
नवजात बेसहारा शिशुओं का राष्ट्रीय संरक्षण,
देश भर में फैले स्वयंसेवक..
कभी सामने रहकर चेहरे का भाव पढ़ लेना,
साक्षात भारतमाता नजर आयेगी,
भारत की सनातन संस्कृति को
जिंदा रखने के लिए,
कर्मपथ पर अग्रसर है..
समस्त भारत वासियों को एकजुट रखने की,
उनकी त्याग तपस्या और तड़प,
उन्हें सबसे अलग करती है..
ऐसी भाव एक भारतमाता ही तो,
अपने संतानों को दे सकती है..
धन्य है पंजाब का वो मंडी दौराहा,
लुधियाना जिला का एक छोटा सा गांव,
वो निशा जो जो कि अब ऋतुम्भरा है,
दीदीमाँ के नाम से मशहूर है..
दुश्मनों के मंसूबों को मिट्टी पलीद करती हुई,
जब वो सोलह वर्ष की आयु में,
घर से निकली थी,
हरिद्वार में अपने गुरु परमानंद के सान्निध्य में,
परमतत्व को प्राप्त कर ली..
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का सिर्फ नारा,
लेकिन कैसी शिक्षा दीक्षा हो,
इससे सरकारें करती रही किनारा..
अब संविद गुरुकुलम,
भारत का नारी शिक्षा मंदिर,
देश का पहला सैनिक बालिका विद्यालय..
साध्वी ऋतुम्भरा जी के निर्देशन में,
नारी शक्ति की वो परिकल्पना जो,
अगले दशक में सम्पूर्ण भारत को,
नारी शक्ति की एहसास दिलाएगी..
देश की बागडोर,
सुसंस्कृत विद्वत और निपुण,
नारी शक्तियों को सौंपने की तैयारी..
भारत माता के चरणों में कोटिशः नमन..
धन्य साध्वी ऋतुम्भरा..
धन्य भारतमाता..
धन्य संविद गुरुकुलम..
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २१/०३/२०२५
चैत्र ,कृष्ण पक्ष,सप्तमी तिथि ,शुक्रवार
विक्रम संवत २०८१
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