एक कहानी.. अधूरी सी

गुरुग्राम की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में, बिहार का लड़का, आर्यन, एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। हफ़्तेभर की थकान के बाद उसका दिल बस एक ही चीज़ में सुकून पाता—फोटोग्राफी और कविताएँ लिखना। वह अक्सर अपनी कविताएँ एक ऑनलाइन हिंदी पोर्टल पर डालता, जहाँ साहित्य प्रेमियों की दुनिया बसती थी।
एक दिन, उसकी एक कविता पर एक अनजान नाम से टिप्पणी आई— “शब्दों में जादू है तुम्हारे, एहसासों में गहराई भी!”
नाम था – “मलार”।
आर्यन ने जवाब दिया, “लफ़्ज़ तभी सुंदर लगते हैं जब उन्हें समझने वाली आँखें खूबसूरत हों।”
यहीं से दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई। मलार, केरल की लड़की थी, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र की छात्रा थी। वह हिंदी साहित्य में भी रुचि रखती थी और कभी-कभी कविताएँ लिखती थी। धीरे-धीरे उनकी बातचीत बढ़ने लगी। हर शाम वे अपने दिन की बातें करते, कविताएँ साझा करते, और कभी-कभी दर्शनशास्त्र के गहरे विषयों पर चर्चा करते। आर्यन का ठेठ बिहारी लहजा और मलार की शांत बुद्धिमत्ता—दोनों की बातचीत एक अलग ही रंग में रंग गई थी।
एक दिन मलार ने कहा, “क्या तुम्हें नहीं लगता कि हर इंसान अपनी अधूरी कविता की तलाश में जीता है?”
आर्यन हंस पड़ा, “शायद मैं भी अपनी अधूरी कविता को पूरा करने में लगा हूँ… शायद तुम ही वह कविता हो?”
इस जवाब के बाद दोनों के बीच एक गहरी चुप्पी छा गई। कोई शब्द नहीं, सिर्फ एक अजीब-सी गर्माहट उनके दिलों में बस गई।
लेकिन ज़िंदगी इतनी आसान नहीं होती।
एक दिन मलार ने बताया कि उसे केरल लौटना होगा। उसके माता-पिता ने उसकी शादी तय कर दी थी। आर्यन के लिए यह खबर बिजली की तरह थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे।
शुक्रवार की शाम थी, जब मलार ने आखिरी बार उसे कॉफी शॉप में मिलने बुलाया। वह आई, हमेशा की तरह शांत और मुस्कुराती हुई।
“क्या तुम कुछ कहना चाहोगे?” मलार ने पूछा।
आर्यन ने उसकी आँखों में देखा। वहाँ एक अनकहा दर्द था।
“मैं हमेशा तुम्हारी कविता में ज़िंदा रहूँगी, आर्यन,” उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
आर्यन के पास शब्द नहीं थे, सिर्फ एक गहरी साँस थी जो उसकी छाती में अटक गई थी। मलार चली गई।
वो शाम गुरुग्राम की सबसे तन्हा शाम थी।
कुछ दिनों बाद, आर्यन ने अपनी ब्लॉग पर एक नई कविता पोस्ट की—
“कुछ कहानियाँ अधूरी ही अच्छी लगती हैं,”
“क्योंकि उन्हें पढ़ने वाला हर शख्स, अपने हिसाब से उन्हें पूरा कर लेता है…”