तवील मुरब्बा सालिम

तवील मुरब्बा सालिम
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उसूलो में आदमी है
तभी तक ये ज़िंदगी है
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रहे दिन जो गर्दिशो में
ये क़िस्मत की बस कमी है
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सज़ा के तू आइना रख
मगर धूल मुँह ज़मी है
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किसी ज़िद को याद करो
बहाना है बेबसी है
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यही साफ़ क़ायदा है
कि चुपचाप सादगी है
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बुझाना पहेलियाँ भी
ये शब्दों की बस ठगी है
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सुशील यादव दुर्ग (छ.ग.)
7000226712