सरल सी बातें भी समझ से परे जाकर किसी और से गुफ्तगू करती है।

सरल सी बातें भी समझ से परे जाकर किसी और से गुफ्तगू करती है। मतलब का भी मतलब यूं ही समझ नहीं आ पाता,
जो कभी गलत किया नही समय आने पर वो सही नही हो पाता.. खुद का लिखा न पड़ पाते अक्षर धुंधला हो जाता है।
सीधा रास्ता भी मृगमरीचिका बन चुका होता है… सामान्य से भाव भी अचंभित कर जाते है। मानव, मानव ही नही बन पाता । दोस्त दोस्ती ही नही निभा पाता… परिभाषाएं… सर्वसिद्ध नही बचती…
सिद्धांतो का अन्त हो चुका होता है। जीवन तुमसे तुम्हारा ही परिचय मांगने लगता है…
तुम, खुद तुम नही बचे रह पाते हो
मुश्किल चीजें तो छोड़ों सरल भी कठिन हो जाता है