जीव और जिस्म की सत्ता

जीव जिस्म से अलग है,
जीव की जरूरत जिस्म है,
जिस्म की जरूरत जीव है,
दोनों एक दूसरे से ऐसे मिले हैं,
जैसे आग से रोशनी,
जैसे आग से तापमान,
दोनों एक दूसरे से ऐसे अलग हैं,
जैसे कमल पत्ते से पानी,
जैसे तेल से पानी,
दोनों साथ रहते हैं,
मगर दोनों की अपनी सत्ताएं हैं,
जिस्म की सत्ता जिस्म, मन और इंद्रियों से,
जीव की सत्ता ज्ञान और इन्द्रिय अनुभव से,
ना जीव का अधिकार जिस्म पर,
ना जिस्म का अधिकार जीव पर,
दोनों साथ रहते जरूर मगर,
एक दूसरे से स्वतंत्र एक दूसरे के नियंत्रण में,
परम स्थायी सत्ता जीव की,
अस्थायी सत्ता जिस्म की…
पानी में जैसे नमक की डेली घुलती है,
जिस्म घुलता है वक्त की तरलता में,
नमक का स्वाद रहता है डेली खत्म होती है,
जीव बना रहता है जिस्म मिट्टी राख होता है…
जीव का अधिकार जिस्म पर नहीं,
जिस्म खुद से परिचालित होता है,
अपने हार्मोन से विकसित होता है,
अपनी जरूरतों को खुद तय करता है,
जीव का अधिकार केवल ज्ञान पर,
जिसे जिस्म छानता नहीं जैसा होता है,
उसे ग्रहण करना पड़ता है,
भोजन, हवा, नींद, पानी की छानता नहीं,
ज्ञान की जरूरत जिस्म कभी दिखाता नहीं…
prAstya…..(प्रशान्त सोलंकी)