दिल ना होगा ना मेरी जान मोहब्बत होगी

टुकड़े हो जाएं इस दिल के तो कुर्बत होगी,
दिल ना होगा ना मेरी जान मोहब्बत होगी।
जो सोचूँ ख़्वाब में ऐसी भी ना फ़ुर्सत होगी,
दिल ना होगा ना मेरी जान मोहब्बत होगी।।
है तमन्ना कि ये दिल तोड़कर चले जाओ,
ख़ुशी मिलेगी जो दिल में अपने दफ़नाओ।
रहेगी आरज़ू ना ही कोई…! हसरत होगी,
दिल ना होगा ना मेरी जान मोहब्बत होगी।।
मेरी ख़ामोशी में हो जाने दो दफ़न मुझको,
गर दे सको तो दे देना, इक क़फ़न मुझको।
तमाशा बनना क्या अब जो भी हालत होगी,
दिल ना होगा ना मेरी जान मोहब्बत होगी।।
हमको अपना बनाए आप ये हसरत न रही,
थे हमसे बेख़बर इतने, कभी फ़ुर्सत न रही।
हुए नाउम्मीद ! अब क्या ही इनायत होगी,
दिल ना होगा ना मेरी जान मोहब्बत होगी।।
इश्क़ में तेरे फ़ना होने का न रहा कोई गम,
बेवफ़ाई को वफा कहके सहे जुल्मों सितम।
ख़ौफ़ यह था हमें रुसवा मेरी इबादत होगी,
दिल ना होगा ना मेरी जान मोहब्बत होगी।।
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।